________________ निश्चित है कि कारण के बिना कोई उ. विविध कर्मों में से कुछ कर्म परिस्थिति' भी कार्य नहीं होता है। वृक्ष नजर विशेष में आत्मा से ज्यादा बलवान आता है पर यह भी निश्चित है कि होते हैं परन्तु अधिकतर कर्म निर्बल इसके मूल में बीज रहा हुआ है, चाहे होते हैं। वह दिखायी न दे। कारण भले ही सबल कर्म जिन्हें शास्त्रों में निकाचित प्रत्यक्षरूपेण दृष्टिगत नहीं होता है कहा गया है, वे कर्म तीर्थंकर, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से कारण चक्रवर्ती, इन्द्र, हर जीव को भोगने ही अवश्यमेव विद्यमान होता है यथा - होते हैं। वे जप-तप, साधना-संयम, 1. एक ही माता-पिता के दो पुत्रों में किसी भी उपाय से नष्ट नहीं होते हैं से एक मूर्ख होता है और दूसरा जैसे महावीर प्रभु को भी कान में खीले विद्वान् / एक कुरूप होता है और ठुकवाने पडे। परन्तु अधिकतर कर्म दूसरा सुंदर। एक अमीर होता है ऐसे होते हैं, जिन्हें जप-तप-ध्यान और दूसरा गरीब। आदि के द्वारा घटाया-बढ़ाया जा 2. एक ही अध्यापक के सानिध्य में सकता है: अथवा पूर्ण रूप से नष्ट समान रूप से विद्यार्जन करने किया जा सकता है। अशाता को वाले दो बालकों में से एक प्रथम शाता में, अपयश को सुयश में श्रेणी से उत्तीर्ण होता है और दूसरा परिवर्तित किया जा सकता है, लम्बी अनुत्तीर्ण हो जाता है। स्थिति को छोटा किया जा सकता है। प्र.302. पूर्वकृत कर्मानुसार जीव सुख- इससे स्पष्ट है कि प्रयास करके कर्म दुःख प्राप्त करता है और पर विजय प्राप्त की जा सकती है। प्रयत्नशील होने पर भी मुक्त नहीं कदाच् सफलता प्राप्त न हो तो हो पाता है।' कर्मवाद के इस पूर्वकृत कर्म की प्रबलता जानकर धैर्य सिद्धान्त से प्रतीत होता कि जीव धारण करना चाहिये। . से ज्यादा बलवान कर्म है। और इस प्रकार आत्मा साधना के विविध जब जीव से ज्यादा बलवान कर्म अनुष्ठानों से जुडती हुई आश्रव द्वारों है तो फिर कर्ममुक्ति की दिशा में को बन्द करके एवं सम्पूर्ण निर्जरा प्रयत्न क्यों किया जाये? करके परमात्मा बन जाती है।