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________________ जैन धर्म क्या है? प्र.255.धर्म किसे कहते हैं? ब्राह्मण, जम्बूकुमार वैश्य, हरिकेशी व उ. दुर्गति में गिरते हुए जीव को जो मेतारज मुनि चाण्डाल, आनंद श्रावक धारण करें, उसे धर्म कहते है। पटेल (जाट) थे। जिससे आत्मा कर्म-पंक से मुक्त आपको पता हो तो आज भी अनेक होकर निर्मल व उज्ज्वल अवस्था रूप जाट, रबारी, राजपूत, घांची, दर्जी मोक्ष पद प्राप्त करती है, उसे धर्म आदि अन्यान्य जाति के लोग संयम कहते है। . जीवन की साधना में गतिमान हैं और प्र.256. जैन धर्म किसे कहते है? अपनी आत्मा का कल्याण कर रहे हैं। उ. जिन्होंने राग-द्वेष पर विजय प्राप्त नवकार मंत्र भी गुण प्रधान है। कर ली, उन्हें जिन कहते है एवं उनके जिन्होंने भी राग-द्वेष रूप शत्रुओं को द्वारा प्ररूपित धर्म को जैन धर्म कहते है। जीत लिया, वे समस्त अरिहंत - प्र.257.क्या जैन कुल में जन्मा व्यक्ति ही पूजनीय है। चाहे उनका नाम महावीर जैन हो सकता है अथवा ब्राह्मण, हो या शिव / कृष्ण हो या बुद्ध / 'वैश्य, क्षत्रिय, शूद्र भी? प्र.258. जैन धर्म का प्रारंभ कब से हुआ? उ. जैन धर्म जातिवादी एवं व्यक्ति-रागी उ. जैन धर्म अनादि अनन्त काल से चल न होकर गुणानुरागी है। जो भी रहा है एवं अनन्तकाल तक चलता व्यक्ति जिन/तीर्थंकर पर श्रद्धा रहेगा। अनन्त तीर्थंकर हो चुके हैं करता हुआ जिनाज्ञा के अनुरुप और अनन्त तीर्थंकर होंगे। जीवन जीता है, वह जैन कहलाता भरत क्षेत्र की वर्तमान अवसर्पिणी के है। जैन धर्म जाति प्रधान न होकर अनुसार जैन धर्म का प्रारंभ आदिनाथ जिनाज्ञाप्रधान है। यहाँ जाति-पाति से हुआ। का कोई सवाल ही नहीं है। देखिये! उसके बाद अजितनाथादि धर्म को आदिनाथ से महावीर तक बढाते-चलाते रहे। लगभग पच्चीस चौबीसों तीर्थंकर क्षत्रिय, परमात्मा सौ वर्ष पूर्व महावीर स्वामी हुए, महावीर के गौतमादि ग्यारह गणधर जिनका शासन चल रहा है। *********** ** 83 *** ** ** ***
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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