SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (5)भाषा पर्याप्ति-जिस शक्ति से जीव भाषा योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है एवं भाषा में बदल कर उनका विसर्जन करता है। (6)मनः पर्याप्ति- जिस शक्ति से जीव मन योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके सोचता है। प्र.254.प्राण तथा पर्याप्ति में क्या अन्तर है? उ. प्राण जीव की आन्तरिक शक्ति है जबकि पर्याप्ति पौद्गलिक शक्ति है। जिस प्रकार किसी भी वाहन में दौड़ने की शक्ति होने पर भी उसे डीजल, पेट्रोल की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार आत्मा परम शक्तिशाली होने पर भी जीवन संचालन हेतु पुद्गलों की सहायता लेनी ही होती है। प्राणी के द्वारा खाना, पीना, चलना, उठना, बैठना, बोलना, सोचना जो भी क्रियाएं की जाती हैं, वह प्राण शक्ति है परन्तु उसमें जो पौद्गलिक शक्ति सहायक बनती है, उसे पर्याप्ति कहते है। ये आपस में जुड़े हुए है। जैसे पाँच इन्द्रियों की प्राण शक्ति का कारण इन्द्रिय पर्याप्ति है, मनोबल, वचन बल, कायबल का कारण क्रमशः मन, भाषा एवं काय (शरीर) पर्याप्ति है। श्वासोच्छवास प्राण का कारण श्वासोच्छवास पर्याप्ति तथा जीवन टिकाने में आहार महत्त्वपूर्ण होने से आयुष्य प्राण का कारण आहार पर्याप्ति है।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy