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________________ - प्राण एवं पर्याप्ति का विवेचन प्र.250.प्राण किसे कहते है? एवं विसर्जन की शक्ति को उ. जीवन शक्ति को प्राण कहा जाता है। श्वासोच्छवास प्राण कहा जाता है। इसका संयोग जीवन एवं वियोग मृत्यु (10)आयुष्य प्राण- नियत काल है। जैसे-जैसे प्राण-शक्ति क्षीण पर्यन्त जीवित रहने की शक्ति को होती है, वैसे-वैसे शरीर बूढा, निर्बल आयुष्य प्राण कहा जाता है। एवं क्षीण होता जाता है। जब प्राण प्र.252.पर्याप्ति किसे कहते है? शक्ति नष्ट हो जाती है, तब प्राणान्त उ. पुद्गलों के समूह से आत्मा में प्रकट हो जाता है। प्राण धारण करने से ही शक्ति को पर्याप्ति कहा जाता है। जीव को प्राणी कहा जाता है। प्र.253.पर्याप्तियाँ कितने प्रकार की कही प्र.251.प्राण कितने प्रकार के कहे गये हैं? गयी हैं? उ. दस प्रकार के उ. छह प्रकार की(1-5)पांच इन्द्रिय प्रांण- त्वचा में (1)आहार पर्याप्ति- जिस शक्ति से ठण्डा-गर्म, मृदु-कर्कश, स्निग्ध जीव पदार्थ को आहार में परिणत रूक्ष, भारी-हल्का ये आठ स्पर्श करता है। जानने की, जीभ में स्वाद ग्रहण की, (2)शरीर पर्याप्ति- जिस शक्ति से नाक में सूंघने की, आँख में देखने की जीव आहार को रस, रक्त, अस्थि, तथा कान में सुनने की जो शक्ति है, मज्जा, चर्बी, मांस एवं वीर्य, इन वे स्पर्शनेन्द्रिय आदि प्राण कहलाते सात धातुओं में बदलता है। (3)इन्द्रिय पर्याप्ति- जिस शक्ति से (6-8)तीन योग प्राण- मन-वचन जीव शरीर को पाँच इद्रियों में काया में क्रमशः सोचने, बोलने एवं __ परिणत करता है। . करने की जो शक्ति है, उन्हें मनोबल, (4)श्वासोच्छवास पर्याप्ति- जिस / वचनबल एवं कायबल प्राण कहा शक्ति से जीव श्वासोच्छवास जाता है। योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है (9)श्वासोच्छवास प्राण- श्वास ग्रहण एवं छोड़ता है।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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