________________ 'प्र.245. क्या कोई ऐसे चिह्न हैं, जिनसे हम उ. देवों को पहचान सकते हैं? उ. क्यों नहीं ! शास्त्रों में चार चिह्न बताये गये हैं(1)उनकी पलकें नहीं झपकती हैं। (2)गले में स्थित पुष्पमालाएँ मुरझाती नहीं हैं। (3)उनको पसीना नहीं होता है। (4)जमीन से चार अंगुल ऊपर अर्थात् अधर रहते हैं। प्र.246. देवों के दिव्य ऋद्धि-समृद्धि होती है तो क्या वे चोरी, युद्ध आदि घृणित कार्य करते हैं? उ. देव भी अपने राज्य, धन की सीमा बढ़ाने के लिए युद्ध करते हैं, दूसरे देवों के मूल्यवान् रत्नों, देवियों आदि को भी चुरा लेते हैं। प्र.247. देव किस प्रकार आहार ग्रहण करते हैं? उ. देव मनुष्य की भाँति कवलाहार नहीं . * करते हैं। जब भी आहार की इच्छा उत्पन्न होती है, तब शक्ति के द्वारा शुभ, सरस, श्रेष्ठ, उत्तम पुद्गल स्वतः शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं और उन्हें संतुष्टि का अनुभव होता है। प्र.248. देवों को अमर कहा जाता है तो क्या उनकी मृत्यु नहीं होती है? यदि मृत्यु नहीं होती है तब तो वे शाश्वत रूप से उसी स्थिति में रहते होंगे। अधिकांश देव-दवियों का दीर्घायुष्य (असंख्य वर्ष का) होता है, अतः उन्हें अमरा-अमरी कहा जाता है, परन्तु वह असंख्य वर्षों का आयुष्य भी अवश्यमेव पूर्ण होता है। अलग-अलग देवों के मृत्यु के समय मनःस्थिति अलग-अलग होती है। सम्यक्त्वी आत्माएँ 'मनुष्य देह की प्राप्ति होगी और व्रत-महाव्रत की आराधना में प्रवृत्त होंगे। इस हेतु से आनंदित होते हैं परन्तु मिथ्यात्वी एवं अहर्निश भोगोपभोगों में रत रहने वाले देव जब म्लान पुष्पमाला, कांपते कल्पवृक्ष, शोभाविहीन विमान एवं निस्तेज वस्त्राभूषणों को देखते हैं, तब जान जाते हैं कि छह माह के भीतर मेरी मृत्यु होने वाली है। उस समय उनकी आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है। दिव्य विमान, महान् ऐश्वर्य एवं कल्पवृक्ष का पुनः पुनः स्मरण करते हुए दुःखी होकर करुण-कातर स्वरों से आक्रन्दन करते हैं- हाय / इस अनुपमेय ऋद्धि को छोड़कर नरक तुल्य स्त्री-गर्भ में वास करना होगा और अमृत-भोजन के बदले अपवित्र रज-वीर्य का आहार करना पड़ेगा। इस प्रकार रूदन तथा अश्रुपात करते हुए उनका जीवनदीप बुझ जाता है।