SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के होते हैं, परन्तु द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, उ. चार भेद- (1) तिर्यंच (2) नारकी (3) चतुरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय जीव बादर मनुष्य (4) देव / ही होते हैं। प्र.231.पचेन्द्रिय तिर्यंच के कितने भेद प्र.228. संज्ञी एवं असंज्ञी में क्या अन्तर है? होते हैं? उ. मन वाले जीवों को संज्ञी एवं बिना मन उ. तीन भेद वाले जीवों को असंज्ञी कहा जाता है। () स्थलचर-इसके तीन भेद एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय जीव नियमतः होते हैंअसंज्ञी, देव-नारकी नियमतः संज्ञी (1)चार पाँव वाले चतुष्पद। जैसेतथा पंचेन्द्रिय तिर्यंच एवं मनुष्य हाथी, घोड़ा आदि। संज्ञी-असंज्ञी, दोनों होते हैं। (2)पेट के बल पर रेंगने वाले प्र.229. प्रत्येक एवं साधारण जीव में क्या उरपरिसर्प। जैसे–सर्प, अजगर भेदहै? आदि / जिस एक शरीर में एक जीव होता है, (3)भुजा के बल पर चलने वाले उसे प्रत्येक कहते है। भुजपरिसर्प। जैसे–चूहा, बंदर, जिस एक शरीर में अनन्त जीव रहते छिपकली आदि / हैं, उसे साधारण कहते है। साधारण (I) जलचर- जल में रहने वाले को निगोद तथा अनन्तकाय भी कहा जलचर जैसे–मछली, मगरमच्छ जाता है। साधारण वनस्पतिकाय आदि / , (कंदमूल-आलू, प्याज आदि) के (ii)खेचर- आकाश में उड़ने वाले सिवाय समस्त जीव प्रत्येक ही होते हैं। जीव खेचर (नभचर) जैसेप्र.230.पचेन्द्रिय जीवों के कितने भेद कहे गये हैं? कबूतर, मैना, तोता, चिड़िया, बाज, गरुड़ आदि /
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy