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________________ पंतीए पुढे असुद्धं पंतीए 21 12 / रयम. रयण. 111 भइ - * तभिव अब्भं. उब₹ति बिसाल. पुरोधारत्नम् भरहनरि अह "तमिव अभं० उब्वटृति विसाल. पुरोधोरत्नम् भरहनरिंदो 18 113 14 णो 'णो धिद्धी 118 22 पहुणो पबोहिमो। उद्घान्त६० तंवाणं वरदाममई वाणयात्रात् पक्ख रो 10. . 28 पबोहिमो? उद्भ्रान्तभ्र० तं वाणं वरदामवई बाणपात्रात् •पक्खधरो वढू, विवत्तीए उसहकूडम्मि वट्ट 84 असुद्धं सुखं बल उवेभो बल-उवेओ भडुणा अहुणा पक्खिविऊण, पक्विबिऊण अणंतरदिण्णक० अणंतरं दिण्णक. वसंत्० वसंतू. रोहाओउ. रोहाओ उ. संपेक्केण संपक्केण नियाइमा नियोइया कामणीए कामिणीए धि दी . पदृधरे पहधर०पहुणा हत्थेहि हत्थेहि सम समं तुम्हे निज्वं निच्च विमोत्तण विमोत्तूण च स्संति चइस्संति कया त परिचइता परिचइत्ता भगवतस्स अठणा जैउणा •णिज्ज सरीरठ .णिज्जसरीर. कण्णमायर० कण्णामयर० * दुःश्वाय. दुःश्वाप. सह भकखरं भक्खरं नाणसं माणस्स उपसमम्सम उवसमसम्म मिच्छत प्राणापह णम् प्राणापहरणम् जलहराव जलहरव्व गण गण- 'चउ. 'सस्थाणं 10 130 131 कया ते 133 रणो भगवंतस्स 131 136 विपत्तीए उसहकुडम्मि हरण्णो ठाणेसुंसाम बिज्जा. विहम० भंगगंमि पिडसंतिपमकनिहिणो बावत्तरि भोकान्ता •सेणावइ विवि ठाणेसुं सामं विज्जा. विहम. अंगणंमि पिउसंतियभवमिहिणो बावत्तरिभाक्रान्ता सेणावई 111 2 - * * * * . . . . सह विव मिच्छत्त इंव इव 11. 26 106 151 153 155 भयाइ भयाई 13 21 / 17 इच्छतो पक्खिज्जमाण पक्सिज्जमाण इच्छंतो सज्जीवति सज्जीभवंति 156 157 1.9 13 सस्थाणं *
SR No.004443
Book TitleSiri Usahanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
PublisherNemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1968
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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