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________________ भरहबाहुबलीणं जुद्धं 177 पसुं पिव गयणम्मि तं उल्लालेइ, 'बलीणं पि बलिणो उप्पत्ती अहो ! निरवही सिया' धणुक्काओ विमुक्को बाणो इव, जंताओ विमुक्को पाहाणो इव तइया सो भरहेसरो गयणपहम्मि दूरं गच्छेइ, सक्क-विमुत्त-बज्जाओ विव तो आवडंतभरहाओ जुदपेक्खिणो सम्बे खेयरा पलायंति, उभेसु सेण्णेसु महंतो हाहारवो जाओ, महंताणं हि आवयागमो कास पडिकूलं दुक्खकारण न सिया ?, तइया बाहुबली विचिंतेइ-मज्झ इमं बलं घिरत्थु, बाहुणो धिरत्थु, अवियारियकारगं च मं धिरत्थु, एयकम्मुविक्खगे रज्जदुगमंतिणो धिरत्यु, अहवा विगरिहिएहिं एएहिं किं?, अज्जवि जाव मे अग्गो पुढविपि हम्मि पडिऊण कणेसो न विणसेज्जा ताव गयणाओ पडिच्छामि त्ति चिंतिऊण बाहु बली पडंतस्स तस्स हिम्मि सेज्जसरिसे नियभुए धरेइ, उड्ढबाहू संजमीव उड्ढचाहू बाहुबली आइच्चावलोयणवयधारी विव तइया उड्ढमुद्दो चिटइ, उड्ढगमणिच्छ इव पायग्गबलेण चिट्ठमाणो सो निवडतं भरहं गेंदुयलीलाए षडिच्छेइ / तइया दुण्णं सेण्णाण भरहुक्खेवणजायं विसायं तस्स रक्खणसभुप्पण्णो हरिसो उस्सग्गं अवधाओविव सिग्धं अवसारेइ, बाहुबलिणो भाउरक्खणजायविवेगेण सीलगुणेण विज्जा विव जणेहिं बाहुबलिणो पंउरिसं थुणिज्जइ, सुरा बाहुबलिस्स उवरिं पुप्फवुट्टि विहेइरे, अहवा तारिसवीरवयजुत्तस्स तस्स कियंत इमं ? / तया भरहेसरो जुगवं लज्जाकोवेहिं धूमजालाहिं वन्हीव जुज्जइ / अह लज्जानमंतवयणपंकओ बाहुबली जिट्ठस्स भरहस्स वेलक्खं हरिउ संगग्गरं एवं वएइ-जगनाह ! महावीरिअ ! महाभुय ! मा विसीएसु, देव्वजोगेण कयाई केण वि विजई वि विजिणिज्जइ, एयावंतेण तुमं न जिओ सि अहं च अणेण विजई न अम्हि, घुणक्खरनारण अज्ज वि अहं अप्पणो जयं मण्णेमि / अओ भुवणेसर ! तुम चिय इक्को वीरो असी, जओ देवेहि महिओ वि वारिही वारिही चेव, न 'दिग्घिआ, छखंडभरहेसर ! फालचुओ वग्यो विव किं चिठेसि ? रणकम्मटुं उच्चिसु उचिट्ठसु / एवं सोच्चा भरहो वि एवं भासेइ-अयं मे बाहुदंडो मुठ्ठि पगुणंतो नियदोसस्स पमज्जणं करिस्सइ च्चिय, तओ चक्कवट्टो फणीसरो फणं पिव मुहिँ समुज्जमिऊण कोवतंवनयणो अवसरिऊण बाहुबलिं अभि धावेइ, भरहो तेण मुहिणा बाहुबलिणो उरत्यलं मयंगओ दंतेण गोउरस्स कवाई पिव आहणेइ, चक्कवट्टिणो बाहुवली--उरत्थलम्मि सो मुट्ठिप्पहारो कुपत्ते दाणं पिव बहिरे कण्णजावच पिसुणम्मि सकारुव्व खारभूमीए जलवुट्ठीव रणम्मि संगीयं पिव हिमम्मि चन्हिपाओ विव मुहा होत्था / अह 'अम्हाणं पि किं 1 कणशः-खण्डशः। 2 कन्दुकलीलया। 3 पौरुषम् / 4 वैलक्ष्य-लज्जाम् / 5 सगद्गदम् / 6 दीपिकापापी। 7 समुद्यम्य / 8 उरःस्थलम् / 9 गोपुरस्य-नगरद्वारस्य / 23
SR No.004443
Book TitleSiri Usahanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
PublisherNemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1968
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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