________________ 176 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका "गीतं मुणिते." गाधा / पच्छद्धस्स 'व्याख्यागीतेण होड़ गीई, अत्थी अत्थेण होइ णायव्वो। गीतेण य अत्थेण य, गीयत्थं तं विजाणाहि // 693 // "गीतेण०" गाधा / कंठा / आह, को गीतत्थो ? उच्यतेजिणकप्पिओं गीयत्थो, परिहारविसुद्धिओ वि गीयत्थो / गीयत्थे इड्दिदुगं, सेसा गीयत्थणीसाए // 694 // "जिणकप्पिओ०" गाधा / अपि शब्दात् प्रतिमाप्रतिपन्नको अधालंदिकश्च गीतार्थ एव / एते गीतार्था भवन्ति / इड्डिदुगं च गीतार्थम् / आह, किमिड्डिदुगं ? उच्यते आयरिय गणी इड्डी, सेसा गीता वि होंति तण्णीसा। गच्छगय णिग्गया वा, थाणणिउत्ताऽणिउत्ता वा // 695 // "आयरिय०" गाहा / कंठा / के य ते सेसा ? उच्यते-गच्छगता णिग्गता त गच्छातो असिवादीहिं, २उल्मुकदृष्टान्तात् / अधवा सेस त्ति, थाणणिउत्ता य थाणअणिउत्ता य, ठाणणिउत्ता पवित्तिमादी / तव्वतिरित्ता अणिउत्ता / आयारपकप्पधरा, चउदसपुव्वी अ जे अ तम्मज्झा। तण्णीसाएँ विहारो, सबाल-वुड्डस्स गच्छस्स // 696 // "आयारपकप्प०" गाधा / आयारपकप्पधरो जहण्णओ गीतत्थो / चोद्दसपुव्वी उक्कोसओ, मज्झे मज्झिमओ / सेसं कंठं / एते गीयत्थे मोत्तुं एतण्णिस्सं च, सेसस्स न वट्टति / जो पुण एगविहारी अ अजायकप्पिओ जो भवे चवणकप्पे। उवसंपण्णो मंदो, होहिइ वोसट्टतिट्ठाणो // 697 // "एगविहारी०" गाधा / जो एगागी विहरति सो एगविहारी / सो पुण जातकप्पिओ वा होज्जा, अजातकप्पिओ वा / जातकप्पिओ णाम गीतत्थो, अजातकप्पिओ अगीतत्थो / चवणकप्पो नाम पासत्थादिविहारो / एतेर्सि इमं पच्छित्तं मोत्तूणं गच्छणिग्गत, गीयस्स वि एक्कगस्स मासो उ। अविगीए चउगुरुगा, चवणे लहुगा य भंगट्ठा // 698 // "मोत्तूण" गाधा / गच्छणिग्गते जिणकप्पियादिणो मोत्तुं जो अण्णो गीतत्थो वि 1. वक्खाणिज्जइ पू० 1-2, पा० विना / 2. उलुमुक० पू० 2 /