________________ 134 [पीठिका बृहत्कल्पचूर्णिः // अभतट्ठीणं दाउं, अण्णेसिं वा अहिंडमाणाणं / हिंडेज्ज असंथरणे असती घेत्तुं अरड्यं तु // 516 // ण तरिज्जा जति तिण्णि उ, हिंडावेउं तओ णु छारेणं / ओयत्तेउं हिंडति, अण्णे व दवं से गिण्हंति // 517 // लित्थारियाणि जाणि उ, घट्टगमाईणि तत्थ लेवेण / संजमभूतिणिमित्तं, ताइं भूईएँ लिंपिज्जा // 518 // एवं लेवग्गहणं, आणयणं लिंपणा य जयणा य / भणियाणि अतो वोच्छं, परिकम्मविहिं तु लित्तस्स // 519 // लित्ते छाणिय छारो, घणेण चीरेण बंधिउं उण्हे। उव्वत्तण परियत्तण, अंछिय धोवे पुणो लेवो // 520 // . काउं सरयत्ताणं, पत्ताबंधं अबंधगं कुज्जा। साणाइरक्खणट्ठा, पमज्ज छाउण्हसंकमणा // 521 // तद्दिवसं पडिलेहा, कुंभमुहाईण होइ कायव्वा / : छण्णे य निसिं कुज्जा, कयकज्जाणं विवेगो उ // 522 // अट्टगहेउं लेवाहियं तु सेसं सरूवगं पीसे / अधवा वि ण दायव्वो, सरूयगं छारे तो उज्झे // 523 // "अंगुट्ठ०" गाधाओ दस कंठाओ // पढमचरिमाउ सिसिरे, गिम्हे अद्धं तु तासि वज्जित्ता / पायं ठवे सिणेहादिरक्खणट्ठा पवेसे वा // 524 // उवयोगं च अभिक्खं, करेति वासादि-साणरक्खट्ठा / वावारेति व अण्णे, गिलाणमादीसु कज्जेसु // 525 // एक्को य जहण्णेणं, बिय तिय चत्तारि पंच उक्कोसा / संजमहेउं लेवो, वज्जित्ता गारव विभूसं // 526 // अणवटुंते तह वि उ, सव्वं अवणेत्तु तो पुणो लिंपे। तज्जाय सचोप्पडयं, घट्ट रएउं तु जं धोवे // 527 // "पढम-चरिमाओ०" गाधा / सिसिरो''त्ति हेमंतो / तम्मि पढमाए पोरिसीए