________________ 104 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका वेज्जेहिं णिसेधितो। पच्छा सारीरेण दंडेण दंडितो / एवामेव कोइ सीसो कारणणिसेवि लहुसग, अगीयपच्चय विसोहि दट्टण / सव्वत्थ एव पच्चंतगमण गीतागते दंडो // 379 // "कारण०" गाधा / आयरिएहि अण्णस्स कस्सइ साहुस्स कारणणिसेविस्स अगीयपच्चयाणिमित्तं किंचि अधालहुस्सयं पच्छित्तं दिण्णं / तं दटुं चिंतेति-एवं सव्वत्थ वि दायव्वं ति / पच्चंतं गतो भणति-एध, अहं पि जाणामि पच्छित्तं / णिक्कारणे पडिसेविते भणति-भणह, कारणे / ताधे इतरो भणति-सुद्धो त्ति / पच्छा अण्णेहिं गीतत्थेहिं दिट्ठो / तेहिं द्रावितो / दिसा य से हरिता / एरिसा जे पुरिसा सा दुव्वियड्डिया परिसा / दुव्वियड्डियाए जो देति तस्स ह्व (4) / जाणियाए अजाणियाए य जो ण देति तस्स वि ह (4) / अधवा परिसा दुव्विहा-लोइया लोउत्तरिया य / लोइया पंचविधा / तं जधा पूरंती छत्तंतिय, बुद्धी मंती रहस्सिया चेव / पंचविधा खलु परिसा, लोइय लोउत्तरा चेव // 380 // पूरंतिया महाणो, छत्तविदिण्णा उ ईसरा बितिया / समयकुसला उमंती, लोइय तह रोहिणिज्जा या // 381 // "पूतिया महाणो०" त्ति गाधा / अस्य व्याख्या णीहम्मियम्मि पूरति, रणो परिसा ण जा घरमतीति / जे पुण छत्तविदिण्णा, अतंति ते बाहिरं सालं // 382 // "णीहम्मियम्मि०" गाधा / जाधे राया घरातो णिग्गतो भवति, ताधे जावंतिको एति सव्वो ढुक्कति, जाव घरं न एति / एसा पूरेतिता / 'छत्तविदिण्णा य ईसरा बितिय' त्ति परिसा। जाधे बाहिरिल्लं सालं पविसेति ताधे जे छत्तविदिण्णा रायाणो भड-भोइया य ते पविसंति, सेसा वारिज्जंति / एसा छत्तंतिया / बुद्धिपरिसा समयकुसला य त्ति / अस्स ३विभासा जे लोग-वेद-समएहिँ कोविया तेहिँ पत्थिवो सहितो। समयमतीतो परिच्छति, परप्पवादागमे चेव // 383 // "जे लोग०" गाधा / कंठा / परप्पवादागमे चेव त्ति परप्रवादानां आगमं करोति शृणोतीत्यर्थः / एसा बुद्धिपरिसा / 'मंतिपरिसा' / अस्य व्याख्या 1. ०पच्चय० पू० 1, पा० / 2. जावंति कोइ एति पू० 1-2 विना / 3. व्याख्या पा० / 4. विभासा पू० 2 /