________________ बृहत्कल्पवृत्ति के कर्ता आचार्य मलयगिरि का समय १३वीं सदी माना गया है / उन्होंने बृहत्कल्प वृत्ति में अनेक स्थलों पर चूर्णि के पाठों का उपयोग किया है और कई जगह चूर्णि के अनुसार शब्द की व्याख्या भी की है। इसके अतिरिक्त पाटण नरेश कुमारपाल के समय संवत् 1218 में लिखी हुई बृहत्कल्पचूणि की प्रत भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट में है / अतः यह स्पष्ट है कि बारहवीं सदी से पूर्व किसी समय इसकी रचना हुई है। विशेषचूर्णि : इसके रचयिता भी अज्ञात है। विशेषचूर्णिकार शब्दश: चूर्णि का ही अनुसरण करते हैं। कहीं कहीं चूर्णि में जो अस्पष्ट है उसे उन्होंने स्पष्ट किया है। इससे स्पष्ट है कि चूर्णि के पश्चात् ही विशेष चूणि का निर्माण हुआ है / यह विशेषचूर्णि भी अपूर्ण है। विशेष चूर्णिकार बृहत्कल्पसूत्र के. मासकल्प से एवं भाष्यगाथा 1086 से-से गामंसि वा नगरंसि वा...(१-६) सूत्र से प्रारम्भ कर शेष मूल सूत्र के छहों उद्देश तक में अपनी विशेष व्याख्या पूर्ण करते है। इसके पूर्व का भाग अप्राप्य है। चूर्णिकार द्वारा स्वीकृत भाष्यगाथाओं के अतिरिक्त कुछ नई गाथाएँ भी विशेष चूर्णिकार ने दी है। चूर्णिकार तथा विशेषचूर्णिकार ने तत्त्वार्थाधिगम, विशेषावश्यकभाष्य, कर्मप्रकृति, महाकल्प, पंचकल्पभाष्य, निशीथचूर्णि, गोविन्दनियुक्ति आदि ग्रन्थों का उल्लेख किया है। __ भाषा की दृष्टि से चूर्णिकार प्रायः प्राकृत तथा संस्कृत मिश्रित भाषा का प्रयोग करते हैं / अनेक ग्रामीण तथा देशी शब्दों का प्रयोग करते हैं / आगमों के गम्भीर रहस्यों को लौकिक कथाओं के माध्यम से बड़े ही सरल ढंग से समझाते हैं / इस प्रकार प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता का अध्ययन करने के लिए बृहत्कल्पचूणि अत्यन्त उपयोगी है / जैन श्रमणों के आचार का हृदयग्राही, सूक्ष्म, तार्किक विवेचन इस चूर्णि की विशेषता है / बृहत्कल्पचूर्णिपीठिका : बृहत्कल्पसूत्र के सम्पूर्ण सार तत्त्व का इस पीठिका में सुन्दर रूप से निरूपण हुआ है। मंगलवाद, ज्ञानपंचक में श्रुतज्ञान के प्रसंग का वर्णन करते हुए सम्यक्त्व प्राप्ति का क्रम और औपशमिक, सास्वादन, क्षायोपशमिक, वेदक और क्षायिक सम्यक्त्व के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है। अनुयोग का स्वरूप बताकर निक्षेप आदि बारह प्रकार के द्वारों का सुन्दर निरूपण किया है / कल्प-व्यवहार की विविध दृष्टि से विवक्षा करते हुए यत्र तत्र विषयों को स्पष्ट करने के लिए दृष्टान्तों का भी उपयोग किया है / उस युग की सामाजिक सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक स्थितियों सुन्दर दर्शन इस चूर्णि पीठिका में हुआ है।