________________ गुरुदोषः] [39 | नाम . व्याख्या गाथा 2/1 उ.प. 1/9 * * = ववहारं जाणंतो, ववहारं चेव पन्नवेमाणो / ववहारं फासंतो, गुरुगुणजुत्तो गुरू होइ / गु. = उभयण्णू वि किरियापरो दढं पवयणाणुरागी य / ससमयपण्णवओ परिणओ य पण्णो य अच्चत्थं // 852 // 852 सम्यग्ज्ञानक्रियायुक्तः सम्यग्धर्मशास्त्रार्थदेशकः, धर्मज्ञो धर्मकर्ता च, सदा धर्मपरायणः / सत्त्वेभ्यो धर्मशास्त्रार्थदेशको गुरुरुच्यते / * जो जेण सुद्धधम्मे निओइओ संजएण गिहिणा वा / / सो चेव तस्स भण्णति धम्मगुरू धम्मदाणाओ // पं. = गुरुर्गृहीतशास्त्रार्थः परां निःसङ्गतां गतः / मार्तण्डमण्डलसमो भव्याम्भोजविकाशने // उ.प. गुणानां पालनं चैव तथा वृद्धिश्च जायते / यस्मात्सदैव स गुरुभवकान्तारनायकः // उ.प. 184 = ज्ञानादिमान् प्रसिद्धश्च वत्सलः कुलजो महान् // 215 // 215 गुणानां पालनं चैव तथा वृद्धिश्च जायते / यस्मात् सदैव स गुरुर्भवकान्तारनायकः // 216 / / ब्र.सि. 216 = पञ्चमहाव्रतधरः समशत्रुमित्रः सद्धर्मोपदेशदायी धर्माचार्यः / स.स. = सुगुरुत्तं साहूणं, गंथच्चाएण होइ नाणीणं / गु. = तत्थ सुविज्जो य इमो आग्गं जो विहाणओ कुणइ / चरणारुग्गकरो खलु एवमित्थ गुरू वि विन्नेओ // 5 // विं. 15/5 * जस्स समीवे भावाउरा तहा पाविऊण विहिपुव्वं / / चरणारुग्गं पकरंति सो गुरू सिद्धकम्मुत्थ // 6 // विं. 15/6 * एसो पुण नियमेणं गीयत्थाइगुणसंजुओ चेव / धम्मकहापक्खेवगविसेसओ होइ उ विसिट्ठो // 8 // वि. * धम्मकहाउज्जुत्तो भावन्नू परिणओ चरित्तम्मि / संवेगवुड्डिजणओ सम्मं सोमो पसंतो य // 9 // विं. 15/9 = गुरु:-महान् दोषो-दूषणमशुभकर्मबन्धादिरूपो यस्मिन्नसौ गुरुदोषः / पं. 5/12 29 4/1 15/8 गुरुदोषः