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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-1-5 (339) 21 का घर हो जाएगा। और पेशाब करना चाहे तो उनके सामने तो कर नहीं सकता, इसलिए उसे एकान्त एवं निर्दोष स्थान ढूंढने के लिए बहुत दूर जाना पड़ेगा या फिर सदोष स्थान में ही मल त्याग करना होगा। इस तरह आहार, शौच, स्वाध्याय एवं विहार में गृहस्थ आदि के साथ जाने से संयम में अनेक दोष लगते हैं और अन्य मत के भिक्षुओं के अधिक परिचय से साधु की श्रद्धा एवं संयम में शिथिलता एवं विपरीतता भी आ सकती है तथा उनके घनिष्ठ परिचय के कारण श्रावकों के मन में संन्देह भी पैदा हो सकता है। इन्हीं सब कारणों से साधु को उनके साथ घनिष्ट परिचय करने एवं भिक्षा आदि के लिए उनके साथ जाने का निषेध किया गया है, न कि किसी द्वेष भाव से। अतः साधु को अपने संयम का निर्दोष पालन करने के लिए स्वतन्त्र रूप से गृहस्थ आदि के घर में प्रवेश करना चाहिए। इनके साथ आहार आदि का लेन-देन करने से भी संयम में अनेक दोष लग सकते हैं, अतः उनके साथ आहार-पानी के लेन-देन का निषेध करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहते हैं..... I: सूत्र // 5 // // 19 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविढे समाणे नो अण्णउत्थियरस वा गारत्थियस्स वा परिहारिओ वा अपरिहारियस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दिज्जा वा अणुपइजा वा || 339 / / II संस्कृत-छाया : - सः भिक्षुः वा भिक्षुणी वा यावत् प्रविष्टः सन् अन्यतीर्थिकस्य वा गृहस्थस्य वा परिहारिक: वा अपरिहारिकस्य अशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिमं वा दद्यात् वा अनुप्रदापये वा || 339 // III. सूत्रार्थ : - गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी, अन्यतीर्थी परपिंडोपजीवी गृहस्थ-याचक और पार्श्वस्थ-शिथिलाचारी साधु को, निर्दोष भिक्षा ग्रहण करने वाला श्रेष्ठ साधु अन्न, जल, खादिम और स्वादिम रूप पदार्थों को न तो स्वयं देवे और न किसी से दिलावे। IV टीका-अनुवाद : ___ वह साधु या साध्वीजी म. आहारादि के लिये गृहस्थों के घरों में प्रवेश करने पर और
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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