SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 586
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-4-8 (548) 547 क्योंकि गृहस्थ एवं अन्य मत के भिक्षुओं के सम्पर्क से उसके मन में राग-द्वेष की भावना जागृत हो सकती है और आध्यात्मिक साधना पर संशय हो सकता है। दूसरे में उसका स्वाध्याय एवं चिन्तन करने का अमूल्य समय (जिसके द्वारा वह आत्मा के ऊपर पड़े हुए कर्म आवरण को अनावृत्त करता हुआ आध्यात्मिक साधना के पथ पर आगे बढ़ता है) व्यर्थ की बातों में नष्ट होगा। और कभी साधु की उत्कृष्ट साधना को देखकर अन्यमत के भिक्षु के मन में ईर्ष्या की भावना जाग उठी तो वह साधु को शारीरिक कष्ट भी पहुंचा सकता है। इस तरह उनका संसर्ग आत्म साधना में बाधक होने के कारण त्याज्य बताया गया है। इसी तरह स्त्रियों के संसर्ग से भी विषय वासना उद्दीप्त हो सकती है और मान-पूजा प्रतिष्ठा की भावना एवं ऐहिक तथा पारलौकिक सुखों की अभिलाषा भी पतन का कारण है। क्योंकि इसके वशीभूत आत्मा अनेक तरह के अच्छे बुरे कर्म करता है। इसलिए साधक को इन सब के कटु परिणामों को जानकर इनसे मुक्त रहना चाहिए। जो साधक इनके विषाक्त एवं दुख परिणामों को सम्यक्तया समझकर इनसे सर्वथा पृथक रहता है, वही श्रमण वास्तव में पंडित है, ज्ञानी है और वही साधक कर्म बन्धन से मुक्त हो सकता है। एक अन्य उदाहरण के द्वारा इस विषय को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं.... सूत्र // 8 // // 548 // II तहा विमुक्कस्स परिणचारिणो धिईमओ दुक्खखमस्स भिक्खुणो। विसुज्झइ जं सि मलं पुरे कडं, समीरियं रुप्पमलं व जोडणा || 548 // संस्कृत-छाया : तथा विमुक्तस्य परिज्ञचारिणः धृतिमतः दुःखक्षमस्य भिक्षोः। विशुद्धयति यत् तस्य मलं पुराकृतं समीरितं रूप्यमलं इव ज्योतिषा || 548 // सूत्रार्थ : III जिस तरह अग्नि चांदी के मैल को जलाकर उसे शुद्ध बना देती है, उसी प्रकार सभी संसगों से रहित ज्ञान पूर्वक क्रिया करने वाला, धैर्यवान एवं सहिष्णु साधक अपनी साधना
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy