________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका . 2-3-31 (539) 523 - I सूत्र // 31 // // 539 // अहावरं चउत्थं महव्वयं पच्चक्खामि, सव्वं मेहुणं, से दिव्वं वा माणुस्सं वा तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं गच्छेज्जा तं चेवं अदिण्णादाणवत्तव्वया भाणियव्वा जाव वोसिरामि, तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा-नो णिग्गंथे अभिक्खणं अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहित्तए सिया, केवली बूयाo- णिग्गंथे णं अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहेमाणे संति भेया संति विभंगा संति केवली-पण्णत्ताओ धम्माओ भंसिज्जा, नो णिग्गंथे णं अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहित्तए सियत्ति पढमा भावणा। अहावरा दुच्चा भावणा-नो णिग्गंथे इत्थीणं मणोहराई मणोहराइं इंदियाई आलोइत्तए णिज्झाइत्तए सिया, केवली बूया०- णिग्गंथे णं इत्थीणं मणोहराई, इंदियाई आलोएमाण णिज्झाएमाणे संति भेया संति विभंगा जाव धम्माओ भंसिज्जा, नो णिग्गंथे णं इत्थीणं मणोहराई, इंदियाई आलोइत्तए णिज्झाइत्तए सियत्ति दुच्चा भावणा। अहावरा तच्चा भावणा-नो णिग्गंथे इत्थीणं पुटवरयाई पुष्वकीलियाई सुमरित्तए सिया, केवली बूयाo- णिग्गंथे णं इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सरमाणे संति भेया जाव भंसिज्जा, नो णिग्गंथे णं इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सरित्तए सियत्ति तच्चा भावणा। अहावरा चउत्था भावणा-नाइमत्तपाणभोयण-भोई से णिग्गंथे, न पणीयरसभोई से णिग्गंथे, केवली बूयाo- अइमत्तपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, पणीयरसभोयणभोई से णिग्गंथे संति भेया जाव भंसिज्जा, नाइमत्तपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, नो पणीयरसभोयणभोइत्ति चउत्था भावणा। अहावरा पंचमा भावणा- नो णिग्गंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्तए सिया, केवली बूयाo- णिग्गंथेणं इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवेमाणे संति भेया जाव भंसिज्जा, नो णिग्गंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइं सयणासणाई सेवित्तए सियत्ति पंचमा भावणा। एतावया चउत्थे महव्वए सम्मं काएण फासेड़ जाव आराहिए यावि भवइ, चउत्थं भंते ! महत्वयं // 539 // II संस्कृत-छाया : अथाऽपरं चतुर्थं महाव्रतं प्रत्याख्यामि, सर्वं मैथुनम्, तत् दिव्यं वा मानुष्यं वा