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________________ 518 2-3-30 (538) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन प्रस्तुत सूत्र में यही बताया गया है कि द्वितीय महाव्रत का महत्व उसके आराधन में हैं। आगम में दिए गए आदेश के अनुसार मन-वचन-काया से उसका आचरण करना ही दूसरे महाव्रत का परिपालन करना है। अतः वचन के बताए गए समस्त दोषों का परित्याग करके दूसरे महाव्रत का पालन करने वाला साधक ही वास्तव में निर्ग्रन्थ एवं आराधक कहलाता है। अब सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी तीसरे महाव्रत के संबंध में आगे का सूत्र कहते I सूत्र // 30 // // 538 // अहावरं तच्चं भंते ! महव्वयं पच्चक्खामि सव्वं अदिण्णादाणं, से गामे वा नगरे वा रणे वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा, नेव सयं अदिण्णं गिण्हिज्जा, नेवण्णोहिं अदिण्णं गिहाविजा अदिण्णं अण्णंपि गिण्हतं न समणुजाणिज्जा, जावज्जीवाए जाव वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा-अणुवीड़ मिउग्गहं जाई से णिग्गंथे, नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाइ से णिग्गंथे, केवली बूयाo- अणणुवीड़ मिउग्गहं जाई से णिग्गंथे अदिण्णं गिण्हिज्जा, अणुवीइ मिउग्गहं जाई से णिग्गंथे, नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाइत्ति पढमा भावणा। ___ अहावरा दुच्चा भावणा-अणुण्णविय पाण-भोयणभोई से णिग्गंथे, नो अणणुण्णविअ पाणभोयणभोई, केवली बूया0- अणणुण्णवियपाणभोयणभोई से णिग्गंथे अदिण्णं भुंजिज्जा, तम्हा अणुण्णवियपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, नो अणणुण्णविय पाणभोयणभोईत्ति दुच्चा भायणा / अहावरा तच्चा भावणा-णिग्गंथेणं उग्गहंसि उग्गहियंसि एतावताव उग्गहणसीलए सिया, केवली बूयाo- णिग्गंथेणं उग्गहंसि अणुग्गहियंसि एतावता अणुग्गहणसीले अदिण्णं ओगिण्हिज्जा, णिग्गंथेणं उग्गहं उग्गहियंसि एतावताव उग्गहण सीलएत्ति तच्चा भावणा। अहावरा चउत्था भावणा-णिग्गंथेणं उग्गहसि उग्गहियंसि अभिक्खणं अभिक्खणं उग्गहणसीलए सिया, के वली बूयाo- णिग्गंथेण उग्गहंसि उग्ग० अभिक्खणं, अणुग्गहणसीले अदिण्णं गिण्हिज्जा, णिग्गंथे उग्गहंसि उग्गहियंसि एतावताव उग्गहणसीइएत्ति चउत्था भावणा।
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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