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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-3-29 (537) 515 तत्र इयं प्रथमा भावना-अनुविचिन्त्यभाषी स: निर्ग्रन्थः, न अननुविचिन्त्यभाषी, केवली ब्रूयात्-अननुविचिन्त्यभाषी स: निर्गन्थ: समापद्येत मृषा-वचनं, अनुविचिन्त्यभाषी स: निग्रन्थः, न अननुविचिन्त्यभाषी इति प्रथमा भावना। अथाऽपरा द्वितीया भावना-क्रोधं परिजानाति स: निन्थः, न क्रोधन: स्यात्, केवली ब्रूयात्०-क्रोधप्राप्तः क्रोधत्वं समापयेत मृषावचनम्, क्रोधं परिजानाति सः निर्ग्रन्थः, न च क्रोधन: स्यात् इति द्वितीया भावना। " अथाऽपरा तृतीया भावना-लोभं परिजानाति सः निर्ग्रन्थः, न च लोभन: स्यात्, केवली ब्रूयात्0- लोभप्राप्त: लोभी समापद्येत मृषावचनम्, लोभं परिजानाति स: निर्ग्रन्थः, न च लोभन: स्यात् इति तृतीया भावना। अथाऽपरा चतुर्थी भावना-भयं परिजानाति स: निर्ग्रन्थः, न च भयभीरुकः स्यात्, केवली ब्रूयात्० भयप्राप्त: भीरुः समापद्येत मृषावचनम्, भयं परिजानाति स: निर्ग्रन्थः, न भयभीरूका स्यात्, इति चतुर्थी भावना / ___ अथाऽपरा अचमी भावना-हास्यं परिजानाति सः निर्ग्रन्थः, न च हसनक: स्यात्, केवली ब्रूयात् हास्यप्राप्तः हासी समापद्येत मृषावचनम्, हास्यं परिजानाति स: निर्ग्रन्थः, न हसनक: स्यात् इति पञ्चमी भावना। एतावता द्वितीयं महाव्रतं सम्यक् कायेन स्पर्शितं यावत् आज्ञया आराधितं च अपि भवति, द्वितीयं हे भदन्त ! महाव्रतम् // 537 / / III सूत्रार्थ : इस द्वितीय महाव्रत में साधक यह प्रतिज्ञा करता है कि- हे भगवन् ! मैं आज से मृषावाद और सदोष वचन का सर्वथा परित्याग करता हूं। अतः साधु क्रोध से, लोभ से, भय से. और हास्य से न स्वयं झठ बोलता है न अन्य व्यक्ति को असत्य बोलने की प्रेरणा देता है और न मृषा भाषण करने वालों का अनुमोदन करता है इस तरह साधक तीन करण एवं तीन योग से मृषावाद का त्याग करके यह प्रतिज्ञा करता है कि हे भगवन् ! “मैं मृषावाद से पीछे हटता हूं, आत्म साक्षी से उसकी निन्दा करता हूं और गुरु साक्षी से उसकी गर्हणा करता हूं और अपनी आत्मा को मृषावाद से सर्वथा पृथक् करता हूं।" इस द्वितीय महाव्रत की ये पांच भावनाएं है उन पांच भावनाओं में से प्रथम भावना यह है जो विचार पूर्वक भाषण करता है वह निर्ग्रन्थ है, बिना विचारे भाषण करने वाला निम्रन्थ नहीं है। केवली भगवान कहते हैं कि बिना
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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