SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 536
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-3-25/26 (533/534) 497 सामायिक चारित्र ग्रहण किया। समस्त सावध योगों का त्याग करके भगवान ने साधना के पथ पर कदम रखा। उस समय भगवान ने केवल देवदूष्य वस्त्र स्वीकार किया। भगवान के केशों को शक्रेन्द्र ने ग्रहण किया और उन्हें क्षीरोदधि समुद्र में विसर्जित कर दिया। - इस पाठ से यह स्पष्ट होता है कि उस युग में भी दिवस, मुहूर्त एवं नक्षत्र आदि देखने की परम्परा थी। और पंच मुष्टि लोच एवं अलंकारों आदि के उतारने का उल्लेख करके भगवान की सहिष्णुता, त्याग एवं तप भावना को दिखाया गया है। कुछ प्रतियों में 'जन्नु वाय पडियाए' के स्थान पर 'भत्तुव्वाय पडियाए' पाठ उपलब्ध होता है। भगवान की दीक्षा के समय वातावरण को शान्त बनाए रखने के लिए इन्द्र के द्वारा सभी वादियों को बन्द करने का आदेश देने का उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे के सूत्र से कहते हैI सूत्र // 25 // // 533 || दिव्यो मणुस्सघोसो तुरियनिनाओ य सरकवयणेणं। खिप्पामेव निलुक्को जाहे पडिवज्जइ चरित्तं // 533 || // संस्कृत-छाया : दिव्यः मनुष्यघोषः तूर्यनिनादः च शक्रवचनेन / क्षिप्रमेव निलुप्तः यदा प्रतिपद्यते चारित्रम् // 533 / / सूत्र // 26 // // 534 // पडिवज्जित्तु धरित्तं अहोनिसं सव्वपाणभूयहियं / साहट्ट लोमपुलया सव्वे देवा निसामिति // 534 // संस्कृत-छाया : प्रतिपद्य चारित्रं अहर्निशं सर्व-प्राणिभूतहितम्। . संहत्य लोमपुलकाः सर्वे देवाः निशामयन्ति // 534 // सूत्रार्थ : जिस समय भगवान सामायिक चारित्र ग्रहण करने लगे, उस समय शक्रेन्द्र की आज्ञा से सभी वादिंत्रों आदि से होने वाले शब्द बन्द कर दिए गए।
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy