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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी-टीका 2-3-4 (512) 479 बहन थी। उनकी पत्नी का नाम यशोदा था। उनकी पुत्री के अनोजा और प्रियदर्शना ये दो नाम थे, जिसका विवाह जमाली के साथ किया गया है। उनके एक दौहित्री भी थी, जिसके शेषवती और यशवती ये दो नाम थे। इस तरह से भगवान महावीर का विशाल परिवार था। ___ अब उनके माता-पिता के सम्बन्ध में कुछ बातों का उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे के सूत्र से कहते है 1 सूत्र // 4 // // 512 // समणस्स णं, अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि हुत्था, ते णं बहूई वासाइं समणोवासगपरियागं पालइत्ता छण्हं जीवनिकायाणं सारक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निंदित्ता गरिहित्ता पडिक्कमित्ता अहारिहं उत्तरगुणपायच्छित्ताइं पडिवज्जित्ता कुससंथारगं दुरूहित्ता भत्तं पच्चक्खायंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए संलेहणाए झुसियसरीरा कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णा, तओ णं आउखएगं भव० ठि० चुए, चइत्ता महाविदेहे वासे चरमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिणिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति // 512 // II संस्कृत-छाया : श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अम्बापितरौ पाश्र्थापत्ये श्रमणोपासको चाऽपि अभवेताम्, तौ च बहूनि वर्षाणि श्रमणोपासकपर्यायं पालयित्वा षण्णां जीवनिकायानां संरक्षणनिमित्तं आलोच्य, निन्दित्वा गर्हित्वा प्रतिक्रम्य यथार्ह उत्तरगुणप्रायश्चित्तानि प्रतिपद्यं कुशसंस्तारकं दूरुह्य भक्तं प्रत्याख्यातः, भक्तं प्रत्याख्याय अपश्चिमया मारणान्तिकया संलेखनया क्षीणशरीरौ कालमासे कालं कृत्वा तत् शरीरं विप्रहाय अच्युते कल्पे देवतया उत्पन्नौ, ततश्च आयुःक्षयेण भवक्षयेण स्थितिक्षयेण च्युतः, च्यवित्वा महाविदेहे वर्षे चरमेण उच्छ्वासेन सेत्स्यतः भोत्स्यत, मोक्ष्यतः परिनिर्वास्यतः सर्वदुःखानां अन्तं करिष्यतः // 512 // III सूत्रार्थ : श्रमण भगवान महावीर स्वामी के माता पिता भगवान पार्श्वनाथ के साधुओं के श्रमणोपासक-श्रावक थे। उन्होंने बहुत वर्षो तक श्रावक धर्म का पालन करके 6 (षट्) जीवनिकाय की रक्षा के निमित्त आलोचना करके, आत्म-निन्दा और आत्मगहीं करके पापों से प्रतिक्रमण कर के-पीछे हटकर के, मूल और उत्तर गुणों की शुद्धि के लिए प्रायश्चित ग्रहण करके, कुशा के आसन पर बैठकर, भक्त प्रत्याख्यान नामक अनशन को स्वीकार किया।
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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