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________________ 478 2-3-3 (511) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन काश्यपगोत्रेण, श्रमणस्य० ज्येष्ठा-भगिनी सुदर्शना काश्यपगोत्रेण, श्रमणस्य० दुहिता काश्यपगोत्रेण, तस्याः द्वे नामधेये, तद्यथा-अनोद्या इति वा प्रियदर्शना इति वा / श्रमणस्य० नप्तृकी (दोहित्री) कौशिकगोत्रेण, तस्याः द्वे नामधेये, तद्यथा शेषवती इति वा यशस्वती इति वा // 511 // III सुत्रार्थ : काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान् महावीर के इस प्रकार से तीन नाम कहे गये हैंमाता पिता का दिया हुआ वर्द्धमान, स्वाभाविक समभाव होने से श्रमण और अत्यन्त भयोत्पादक परीषहों के समय अचल रहने एवं उन्हें समभाव पूर्वक सहन करने से देवों के द्वारा प्रतिष्ठित महावीर। श्रमण भगवान महावीर के काश्यपगोत्रीय पिता के सिद्धार्थ, श्रेयांस और यशस्वी ये तीन नाम थे। श्रमण भगवान महावीर की वासिष्ठ गोत्र वाली माता के त्रिशला, विदेहदत्ता और प्रियकारिणी ये तीन नाम थे / श्रमण भगवान महावीर के पितृव्य-पिता के भाई का नाम सुपार्श्व था, श्रमण भगवान महावीर स्वामी के काश्यपगोत्री ज्येष्ठ भ्राता का नाम नन्दीवर्द्धन था। भगवान की ज्येष्ठ भगिनी का नाम सुदर्शना था। भगवान की भार्या (कि कौडिन्य गोत्रवाली थी) का नाम यशोदा था। भगवान की पुत्री के अनोजा और प्रियदर्शना ये दो नाम कहे जाते हैं तथा श्रमण भगवान महावीर की दौहित्री (कौशिक गोत्र था) शेषवती और यशवती ये दो नाम थे। IV टीका-अनुवाद : सुत्रार्थ पाठसिद्ध होने से टीका नहिं है..... सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में भगवान के नाम एवं परिवार का परिचय दिया गया है। भगवान के वर्द्धमान, श्रमण और महावीर इन तीन नामों का उल्लेख किया गया है वर्द्धमान नाम मातापिता द्वारा दिया गया था। और दीक्षा ग्रहण करने के बाद भगवान की समभाव पूर्वक तपश्चर्या करने की प्रवृत्ति थी, उससे उन्हें श्रमण कहा गया और देवों द्वारा दिए गए घोर परीषहों में भी वे आत्म चिन्तन से विचलित नहीं हुए तथा उन्हें समभाव पूर्वक सहते रहे, इससे उन्हें महावीर कहा गया। आगमों एवं जन साधारण में उनका यही नाम अधिक प्रचलित रहा है। और आज भी वे महावीर के नाम से संसार में विख्यात है। भगवान महावीर के पिता के तीन नाम थे-सिद्धार्थ, श्रेयांस और यशस्वी। उनकी माता के त्रिशला, विदेहदत्ता और प्रियकारिणी ये तीन नाम थे। उनके पिता के भाई का नाम सुपार्श्व था और उनके बड़े भाई का नाम नंदीवर्द्धन था। उनके सुदर्शना नाम की एक ज्येष्ठ
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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