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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-2-7-7-1 (508) 459 अन्योन्यं पादौ आमृज्यात् वा० न तां० शेषं तं चैव, एतत् खलु० यतेत इति ब्रवीमि // 508 // III सूत्रार्थ : वह साधु या साध्वी परस्पर अपनी आत्मा के विषय में की हुई क्रिया जो कि कर्म बन्धन का कारण है, उसको न मन से चाहे, न वचन से कहे, और न काया से कराए। जैसे कि परस्पर चरणों का प्रमार्जन आदि करना। शेष वर्णन त्रयोदशवें अध्ययन छठे सप्तैकक के समान जानना चाहिए। यह साधु का संपूर्ण आचार है, उसे सदा सर्वदा संयम को परिपालन में प्रयत्नशील रहना चाहिए। इस प्रकार मैं कहता हूं। IV टीका-अनुवाद : अन्योन्य याने परस्पर की पैर आदि के प्रमार्जनादि क्रिया पूर्वोक्त सभी प्रकार की क्रिया तथा आध्यात्मिकी एवं सांश्लेषिकी आदि क्रिया साधु स्वयं न करे न करावे तथा मन से भी ऐसी क्रियाओं को न चाहे... इत्यादि बातें पूर्ववत् जानना चाहिए... V सूत्रसार : . प्रस्तुत सूत्र में पारस्परिक क्रिया का निषेध किया गया है। इसका तात्पर्य यह है कि एक साधु दूसरे साधु को यह न कहे कि तू मेरे पैर आदि की मालिश कर और में तेरे पैर की मालिश करूं। परन्तु, इसका यह अर्थ नहीं है कि साधु किसी साधु की बीमारी आदि की अवस्था में गुरु आदि की आज्ञा से उसकी सेवा भी नहीं करे। यह निषेध केवल बिना कारण ऐसी क्रियाएं करने के लिए किया गया है। जिससे जीवन में आरामतलबी एवं प्रमाद न बढ़े और स्वाध्याय का समय केवल शरीर को सजाने एवं संवारने में ही पूरा न हो जाए। इससे स्पष्ट होता है कि विशेष कारण उपस्थित होने पर की जाने वाली सेवा-शुश्रूषा का निषेध नहीं किया गया है। क्योंकि आगम में वैयावृत्य करने से मिलने वाले फल का निर्देश करते हुए बताया है कि यदि वैयावृत्य करते हुए उत्कृष्ट भावना आ जाए तो आत्मा तीर्थकर गोत्र कर्म का बन्ध करता है। इस प्रकार वैयावृत्य से महानिर्जरा का होना भी बताया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि राग-द्वेष से ऊपर उठकर बिना स्वार्थ से की जाने वाली सेवा-शुश्रूषा का सुत्रकार ने निषेध नहीं किया है। 'त्तिबेमि' की व्याख्या पूर्ववत् समझे। // द्वितीयश्रुतस्कन्धे द्वितीयचूलिकायां सप्तमः सप्तैककः समाप्तः //
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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