________________ 422 2-2-3-3-1 (499) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन तब श्रमण आदि की गिनती करके स्थंडिल करें... किंतु यदि वह स्थंडिलभूमि अन्य पुरुष ने स्वीकृत की हो या स्वीकृत न की हो तब यदि मूलगुण को दूषित करनेवाला औद्देशिक दोष हो तो उच्चारादि न करें... तथा वह साधु अन्य पुरुष ने स्वीकृत न की हो ऐसी स्थंडिल भूमि में उच्चारादि न करें किंतु यदि अन्य पुरुष ने स्वीकृत की हो तब उस स्थंडिलभूमि में उच्चारादि मल-मूत्र का त्याग करें... तथा वह साधु, साधु के लिये क्रीत (खरीदी) इत्यादि उत्तरगुण से अशुद्ध स्थंडिलभूमि में मल-मूत्र का त्याग न करें... तथा वह साधु यदि उस स्थंडिलभूमि से गृहस्थ-लोग कंद आदि बाहर निकालते हो या उस स्थंडिल भूमि में कंद आदि लाकर रखते हो तब उस स्थंडिल भूमि में साधु उच्चारादि याने मल-मूत्र का त्याग न करें... तथा वह साधु स्कंध आदि स्वरुप स्थंडिलभूमि में उच्चारादि न करें, यदि वह साधु ऐसा जाने कि- यह स्थंडिल भूमि उपर से सचित्त है, तब उस स्थंडिलभूमि में साधु उच्चारादि याने मल-मूत्र का त्याग न करें... शेष सुगम है... कोलावास का अर्थ है घुणावास... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में उच्चार-प्रश्रवण का त्याग करने की विधि बताई गई है। मल और मूत्र को क्रमशः उच्चार और प्रश्रवण कहते है। साधु को कभी भी इनका निरोध नहीं करना चाहिए। क्योंकि इनके निरोध से शरीर में अनेक व्यधिया एवं भयंकर रोग उत्पन्न हो सकते हैं, जिनके कारण आध्यात्मिक साधना में रुकावट पड़ सकती है। इसलिए साधु को यह आदेश दिया गया है कि वह अपने मल मूत्र का त्याग करने के पात्र में उसकी बाधा को निबारण करले। यदि किसी समय उसके पास अपना पात्र नहीं है तो उसे चाहिए कि अपने साधर्मिक साधु से उसकी याचना करले। परन्तु, मल-मूत्र को रोक कर न रखे। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि साधु को मल-मूत्र का त्याग करने के लिए एक अलग पात्र रखना चाहिए, जिसे मात्रक या समाधि भी कहते है। साधु को ऐसे स्थान पर मल मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए, जो हरियाली से, बीजों से, निगोद काय से, क्षुद्र जीव-जन्तुओं से युक्त हो या सचित हो, गीला हो, सचित्त मिट्टी वाला हो तथा सचित शिला एवं शिला खण्ड पर हो। इसके अतिरिक्त साधु को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जो मल-मूत्र त्यागने का स्थान एक या अनेक साधु-साध्वियों को उद्देश्य में रखकर तथा श्रमण-ब्राह्मणों के साथ भी जैन श्रमणों को लक्ष्य में रखकर बनाया गया हो तो उस स्थान में भी मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए—चाहे वह स्थान पुरुषान्तरकृत भी क्यों न हो।