________________ 382 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 1 अध्ययन - 7 उद्देशक - 1 . अवग्रह प्रतिमा म छट्ठा अध्ययन कहा, अब सातवे अध्ययन का प्रारंभ कहतें हैं... यहां इसका यह अभिसंबंध है कि- पिंड, शय्या, वस्त्र एवं पात्र आदि अवग्रह याने वसति- उपाश्रय के होने पर हि होतें हैं... अतः वह वसति का अवग्रह कितने प्रकार का होता है ? इस संबंध से आये हुए इस सातवे अध्ययन के चार अनुयोग द्वार कहतें हैं... उनमें उपक्रम के अंतर्गत अर्थाधिकार इस प्रकार है... जैसे कि- साधु विशुद्ध याने निर्दोष वसति के अवग्रह का ग्रहण करे... अब नामनिष्पन्न निक्षेप के अधिकार में अवग्रहप्रतिमा यह नाम है... वहां अवग्रह पद के नाम - स्थापना - द्रव्य - क्षेत्र - काल एवं भाव निक्षेप होतें हैं... इन छह (E) निक्षेपों में से नाम एवं स्थापना निक्षेप सुगम है... अतः अब शेष द्रव्य आदि चार निक्षेपों का स्वरूप नियुक्ति की गाथा के द्वारा कहतें हैं.... नि. 319 1. द्रव्य अवग्रह, 2. क्षेत्र अवग्रह, 3. काल अवग्रह, और 4. भाव-अवग्रहः. अथवा सामान्य से अवग्रह के पांच प्रकार हैं... वे इस प्रकार- (1) लोक के मध्यभाग में रहे हुए आठ रुचक प्रदेश से दक्षिण दिशा के अवग्रह का स्वामी सौधर्मेन्द्र है... तथा (2) राजा का अवग्रह... जैसे कि- भरत क्षेत्र के स्वामी चक्रवर्ती आदि राजा का राज्य संबंधित अवग्रह... तथा (3) गांव-नगर के स्वामी (मुखी) का अवग्रह... जैसे कि- गांव या नगर के विभिन्न पाटक याने महोल्ला आदि सहित गांव-नगर का अवग्रह... तथा (4) शय्यातर याने घर-मकान का स्वामी-गृहस्थ का अवग्रह... तथा (5) साधर्मिक याने उस वसति-मकान या उपाश्रय में मासकल्प आदि कल्प से रहे हुए साधु का अवग्रह... और वह सवा योजन पर्यंत का होता है... इस प्रकार अवग्रह के पांच प्रकार हैं... अतः साधु वसति याने उपाश्रय का अवग्रह ग्रहण करने के वख्त उपरोक्त पांचों अवग्रह के नायक की अनुज्ञा प्राप्त करनी चाहिये... अब द्रव्यादि अवग्रह का स्वरूप कहतें हैं... नि. 320 द्रव्य अवग्रह के तीन प्रकार हैं... (1) सचित्त... जैसे कि- शिष्य आदि... (2) अचित्त द्रव्य .