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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-6-1-1 (487) 377 सम्यक्तया प्रतिलेखन करके आहार हेतु जाना चाहिए, यही भगवान की आज्ञा है। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. आहारादि पिंड के लिये गृहस्थों के घर में प्रवेश करने के पहले हि पात्र की प्रतिलेखना करे... यदि उस पात्र में कोई जीव जंतु हो या रजःकण हो तो दूर करे... और संयमी होकर हि गृहस्थ के घर में प्रवेश करे और बाहार निकले... यह पात्र की विधि है... प्रश्न- यहां आहारादि ग्रहण करने के पूर्व हि पात्र की पडिलेहणा और प्रमार्जना करना ऐसी पात्र संबंधित विचारणा क्यों कही ? उत्तर- पात्रकी पडिलेहणा कीये बिना हि आहारादि पिंड ग्रहण करने में कर्मबंध होता है... क्योंकि- केवलज्ञानी परमात्मा ने कहा है कि- पडिलेहण कीये बिना पात्र में आहारादि प्रिंड ग्रहण करने में बर्मबंध स्वरुप आश्रव है... जैसे कि- उस पात्र में बेइंद्रियादि जीवजंतु हो, या गेहुँ बाजरी आदि बीज हो, या धूली रजःकण हो, और ऐसे पात्र में आहारादि पिंड ग्रहण करने में कर्मबंध की पूर्णतया संभावना है... इसीलिये साधुओं की पूर्व कही गइ प्रतिज्ञा है कि- पात्र की पडिलेहणा-प्रमार्जना करके जीवजंतु एवं धूली-रजःकण को दूर करके हि गृहस्थ के घर में प्रवेशादि करें... सूत्रसार : . प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु-साध्वी को आहार-पानी के लिए जाने से पहले अपने पात्र का सम्यक्तया प्रतिलेखन करना चाहिए। यद्यपि साधु सायंकाल में पात्र प्रमार्जित करके बांधता है और प्रातः उनका पुनः प्रतिलेखन कर लेता है, फिर भी आहार-पानी को जाते समय पुनः प्रतिलेखन करना अत्यावश्यक है। क्योंकि कभी-कभी कोई क्षुद्र जन्तु या रज (धूल) आदि पात्र में प्रविष्ट हो जातें है। अतः जीवों की रक्षा के लिए उसका प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करना जरूरी है। यदि पात्र को न देखा जाए और वे क्षुद्र जन्तु उसमें रह जाएं तो उनकी विराधना हो सकती है। इस लिए बिना प्रमार्जन किए पात्र लेकर आहार को जाना कर्मबन्ध का कारण बताया गया है। अतः साधु को सदा विवेक पूर्वक पात्र का प्रतिलेखन करके ही गोचरी को जाना चाहिए। इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं...
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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