________________ 368 2-1-6-1-1 (486) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 1 अध्ययन - 6 उद्देशक - 1 ___ पात्रैषणा // पांचवा अध्ययन कहने के बाद अब छठे अध्ययन का प्रारंभ करतें हैं... इसका यहां यह संबंध है कि- यहां प्रथम अध्ययन में पिंड की विधि कही... वह आहारादि पिंड वसति (उपाश्रय) में आकर हि विधि पूर्वक वापरना चाहिये... ऐसी बात दुसरे अध्ययन में कही है... तथा आहारादि की गवेषणा के लिये ईर्यासमिति की बात तीसरे अध्ययन में कही... तथा आहारादि पिंड की एषणा के लिये निकले हुए साधु को चाहिये कि भाषा-समिति से बात करें... यह बात चौथे अध्ययन में कही है... तथा आहारादि पिंड की गवेषणा पटल (पल्ले) के विना न करें, अतः पांचवे अध्ययन में वस्त्र की एषणा कही है... अब आहारादि पिंड ग्रहण हेतु पात्र चाहिये, अतः इस संबंध से आये हुए छठे अध्ययन में पात्र की एषणा कहते हैं.... पात्रैषणा अध्ययन के चार अनुयोग द्वार हैं उनमें नाम निष्पन्न निक्षेप में पिंडैषणा . अध्ययन है... इस नाम का निक्षेप और अर्थाधिकार पांचवे अध्ययन के प्रारंभ में हि नियुक्तिकार ने कहा है... अब सूत्रानुगम में अस्खलितादि गुण सहित सूत्र का उच्चार करें... वह सूत्र इस प्रकार I सत्र // 1 // // 486 // से भिक्खू वा० अभिकंखज्जा पायं एसित्तए, से जं पुण पायं जाणिज्जा, तं जहाअलाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा तहप्पगारं पायं जे निग्गंथे तरुणे जाव थिरसंघयणे से एगं पायं धारिज्जा, नो बिइयं / से भि० परं अद्धजोयणमेराए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए। से भि0 से जं० अस्सिं पडियाए एणं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई, जहा पिंडेसणाए चत्तारि आलावगा, पंचमे बहवे समण० पगणिय तहेव / से भिक्खू वा० अस्संजए भिक्खू पडियाए बहवे समणमाहणे० वत्थेसणालावओ। से भिक्खू वा० से जाइं पुण पायाइं जाणिज्जा विरूवरूवाई महद्धणमुल्लाइं, तं०- अयपायाणि वा तउया० तंबपाया० सीसगपा० हिरण्णपा० सुवण्णपा० रीरिअपाया० हारपुड़पा० मणिकायकंसपाया० संखसिंगपा० दंतपा० चेलपा० सेलपा० चम्मपा० अण्णयराइं वा