________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-5-2-2 (484) 363 IV टीका-अनुवाद : वह जो कोइ साधु अन्य साधु के पास एक मुहूर्त आदि समय के लिये वापस देने के हिसाब से वस्त्र की याचना करे, और याचना करके अकेला हि यामांतर जावे, वहां वह साधु एक दिन यावत् पांच दिन तक रहकर वापस आवे तब वह वस्त्र उपहत याने दूषित हुआ या कुछ फट गया... अब वह वस्त्र पुनः वस्त्र के स्वामी साधु को दे, तब वह साधु उस वस्त्र का स्वीकार न करे. तथैव वह वस्त्र अन्य साध को भी न दे, तथा उधार भी न करें... किंत कहे कि- यह वस्त्र आप हि रखो, और कितनेक दिनों के बाद आप अन्य वस्त्र मुझे दीजीये... तब वह साधु उस वस्त्र को लेकर अदला-बदली न करे, और अन्य साधु को ऐसा भी न कहे कि- हे श्रमण ! आप इस वस्त्र को लेना या वापरना चाहते हो क्या ? यदि कोइ साधु एकेला हि जावे, उसको वह उपहत (फटा हुआ) वस्त्र दे तब यदि वह वस्त्र अच्छा (पहनने योग्य) हो तो टुकडे टुकडे करके परठे नहिं... तथाप्रकार के फटे हुए या तो सूइ-धागे से सांधे हुओ उस वस्त्र को यदि वस्त्र का स्वामी साधु स्वीकार न करे, किंतु वह फटा हुआ वस्त्र उसीको हि दे, या अन्य कोइ एकाकी जानेवाले अन्य साधु को दे.. इत्यादि... यदि वह कोई एकाकी साधु उपर कहे गये साधु के आचार को जानकर ऐसा सोचे कि- मैं भी वापस देने के हिसाब से मुहूर्त आदि समय के लिये वस्त्र की याचना करके अन्य जगह (गांव) एक दिन यावत् पांच दिन आदि के निवास के द्वारा वस्त्र को उपहत करूंगा, बाद में वह वस्त्र मुझे हि मिलेगा... इत्यादि... ऐसा करने पर वह साधु माया-स्थान के दोष को पाता है, अतः साधु को ऐसा माया-स्थान का सेवन नहि करना चाहिये. v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि यदि किसी साधु ने अपने अन्य किसी साधु से कुछ समय का निश्चय करके वस्त्र लिया हो और उतने समय तक वह ग्रामादि में विचरण करके वापिस लौट आया हो और उसका वह वस्त्र कहीं से फट गया हो या दूषित-मैला हो गया हो, जिसके कारण वह स्वीकार न कर रहा हो तो उस मुनि को वह वस्त्र अपने पास रख लेना चाहिए। और जिस मुनि ने वस्त्र दिया था उसे चाहिए कि वह या तो उस उपहत (फटे हुए या दूषित-मैले हुए) वस्त्र को ग्रहण कर ले। यदि वह उसे नहीं लेना चाहे तो फिर वह उसे अपने दूसरे साधुओं को न बांटे और मजबूत वस्त्र हो तो फाड़ कर परठे (फैंके) भी नहीं और उसके बदले में उससे वैसे ही नए वस्त्र को प्राप्त करने की अभिलाषा भी नहीं रखे। और उस लेने वाले मुनि को भी चाहिए कि यदि वह दाता मुनि उसे वापिस न ले तो वह वस्त्र किसी