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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-5-1-1 (475) 337 आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 1 अध्ययन - 5 उद्देशक - 1 वस्त्रैषणा // चौथे अध्ययन के बाद अब पांचवे अध्ययन का प्रारंभ करते हैं... यहां परस्पर संबंध इस प्रकार है कि- चौथे अध्ययन में भाषा समिति कही, अब भाषा समिति के बाद एषणा समिति होती है, अतः वस्त्र संबंधित एषणा समिति यहां कहेंगे... इस संबंध से आये हुए इस पांचवे अध्ययन के उपक्रमादि चार अनुयोग द्वार होतें हैं, उनमें उपक्रम के अंतर्गत अध्ययनार्थाधिकार में वषैषणा कहना है... और उद्देशार्थाधिकार तो स्वयं नियुक्तिकार हि कहतें हैं... __प्रथम उद्देशक में वस्त्र की ग्रहणविधि कही है, और दुसरे उद्देशक में वस्त्र पहनने की विधि है... नाम-निष्पन्न निक्षेप में वर्चेषणा नाम है... उनमें वस्त्र शब्द के नाम आदि चार निक्षेप होतें हैं... उनमें भी नाम एवं स्थापना निक्षेप सुगम है... द्रव्य वस्त्र के तीन प्रकार है... 1. एकेंद्रिय से बननेवाला कपास-रुइ आदि के सुती वस्त्र... तथा 2. विकलेंद्रियों से बननेवाला चीनांशुकादि रेशमी वस्त्र... तथा 3. पंचेंद्रिय-प्राणी से बननेवाला कंबलरत्न (ऊनी साल-कंबल) आदि... तथा भाववस्त्र है अट्ठारह हजार शीलांग... इन चारों में से यहां तो द्रव्यवस्त्र की तरह पात्र के भी चार निक्षेप होतें हैं उनमें द्रव्यपात्र है एकेन्द्रियादि से बननेवाले... तथा भावपात्र है गुणधारी साधु-साध्वीजी म... . अब सूत्रानुगम में अस्खलितादि गुण सहित सूत्र का उच्चार करें... और वह सूत्र यह है... I सूत्र // 1 // // 475 // से भिक्खू वा० अभिकंखिज्जा वत्थं एसित्तए, से जं पुण वत्थं जाणिज्जा, तं जहा- जंगियं वा, भंगियं वा, साणियं वा पोत्तगं वा खोमियं वा तुलकडं वा, तहप्पगारं वत्थं वा जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारिज्जा नो बीयं, जा निग्गंथी सा चत्तारि संघाडीओ धारिज्जा, एगं दुहत्थवित्थारं दो तिहत्थवित्थाराओ एणं चउहत्थवित्थारं, तहप्पगारेहिं वत्थेहिं असंधिज्जमाणेहिं अह पच्छा एगमेगं संसिविज्जा || 475 // II संस्कृत-छाया : सः भिक्षुः वा० अभिकाङ्क्षत वखं अन्वेष्टुं, स: यत् पुन: वखं जानीयात्, तद्यथाजङ्गमिकं वा भङ्गिकं वा साणिकं वा, पत्रकं वा, क्षौमिकं वा तूलकृतं वा, तथाप्रकारं
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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