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________________ 334 2-1-4-2-5 (474) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन प्रकार रूपादि के संबन्ध में भी ऐसी ही भाषा का प्रयोग करना चाहिए। कुरूप को कुरुप और सुन्दर को सुंदर तथा सुगन्धित एवं दुर्गन्धित पदार्थों को क्रमशः सुगंध एवं दुर्गन्ध युक्त तथा कटु को कटुक और कर्कश को कर्कश कहे। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. कभी ऐसे वैसे विभिन्न प्रकार के शब्द सुने तो भी ऐसा न कहे कि- यह शब्द अच्छा है या बुरा है... तथा मांगलिक है या अमांगलिक है इत्यादि न कहें, किंतु जब कभी कारण उपस्थित हो तो जैसा हो वैसा कहे... जैसे कि- अच्छे शब्द को अच्छा शब्द है ऐसा कहे, एवं बूरे शब्द को बूरा शब्द है ऐसा कहे... इसी प्रकार रूप - गंध - रस एवं स्पर्श के विषय में भी स्वयं हि अपनी प्रज्ञा से जानीयेगा... V सूत्रसार: प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि साधु को 5 वर्ण; 2 गन्ध, 5 रस और 8 स्पर्श के सम्बन्ध में कैसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। सूत्रमें स्पष्ट बताया गया है कि साधु को पदार्थ के यथार्थ वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श का कथन करना चाहिये किंतु पदार्थ के विपरीत नहीं कहना चाहिए अर्थात् राग-द्वेष के वश अच्छे पदार्थ हो उससे विपरीत बरे नहीं कहना चाहिए। राग-द्वेष के वश अच्छे पदार्थ को बुरा और बुरे पदार्थ को अच्छा नहीं बताना चाहिए। कुछ व्यक्ति मोहांध होकर कुरूपवान व्यक्ति को सुन्दर एवं रूप सम्पन्न को कुरूप बताने का भी प्रयत्न करते हैं। परन्तु, राग-द्वेष से ऊपर उठे हुए साधु किसी भी पदार्थ का गलत रूप में वर्णन न करे। साधु को सदा सावधानी पूर्वक यथार्थ एवं निर्दोष वचन का ही प्रयोग करना चाहिए। काले गौरे आदि वर्ण की तरह गन्ध, रस एवं स्पर्श के सम्बन्ध में भी यथार्थ एवं निर्दोष भाषा का व्यवहार करना चाहिए। ___ इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 5 // // 474 // से भिक्खू वा० वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च अणुवीइ निट्ठाभासी निसम्मभासी अतुरियभासी विवेगभासी समियाए संजए भासं भासिज्जा / एवं खलु सया जइ० तिबेमि // 474 // II संस्कृत-छाया : स: भिक्षुः वा वान्त्वा क्रोधं च मानं च मायां च लोभं च अनुविचिन्त्य निष्ठाभाषी
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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