________________ 332 2-1-4-2-3 (472) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन के लिये असमर्थ हैं... इस वाक्यसे “फल पक्के है" ऐसा कहा है... तथा फल बहोत तैयार हो गये है... इस वाक्यसे पकाकर खाने योग्य है ऐसा कहा है... तथा अतिशय पाकके कारणसे यह फल ग्रहण करने योग्य है... इस वाक्यसे वेलोचित अर्थ कहा है... तथाभूतरूप याने बीज= गोटली बद्धी हुइ नहि है अर्थात् अभी फल कोमल है... इस वाक्यसे टालादि अर्थ कहे गये है... यह आमके पैड उपर कहे गये स्वरूप वाले है... यहां फलोंमें आम मुख्य है, अतः उदाहरणमें आम-फलकी बात कही... इस कथनसे कोई भी प्रकारके फलोंके संबंधमें उपरके वाक्य निर्दोष-भावसे साधु विशेष कारण उपस्थित होने पर कहें... . तथा बहोत सारे औषधि याने धान्य = अनाजको देखकर साधु ऐसा न कहे कि- यह धान्य पक्क गये है, या हरे है, या आर्द्र-भीगे है, अर्थात् छिलकेवाले है, या लाजा योग्य है या रोपण योग्य है, या पकाने योग्य है, या काटने योग्य हैं, या विभक्त (अलग) करने योग्य है इत्यादि प्रकारके दोषवाले (सावद्य) वचन न बोलें किंतु जरुरत (कारण) होने पर साधु ऐसा कहे कि- यह औषधि याने धान्य रूढ याने उगे हुए है इत्यादि निर्दोष वचन बोलें... V सूत्रसार: प्रस्तुत सूत्र में भाषा के प्रयोग में विशेष सावधानी रखने का आदेश दिया गया है। साधु चाहे सजीव पदार्थों के सम्बन्ध में कुछ कहे या निर्जीव पदार्थों के सम्बन्ध में कुछ बोले, परन्तु, उसे इस बात का सदा ख्याल रखना चाहिए कि- उसके बोलने से किसी भी प्राणी को कष्ट न हो। असत्य एवं मिश्र भाषा की तरह दूसरे जीवों की हिंसा का कारण बनने वाली भाषा भी, भले ही वह सत्य भी क्यों न हो साधु के बोलने योग्य नहीं है। अतः भाषा समिति में ऐसे सदोष-शब्द बोलने का भी निषेध किया गया है जिससे प्रत्यक्ष या परोक्ष में किसी जीव की हिंसा की प्रेरणा मिलती हो या हिंसा का समर्थन होता हो। साधु प्राणी मात्र का रक्षक है। अतः बोलते समय उसे प्रत्येक प्राणी के हित का ध्यान रखना चाहिए। प्रस्तुत सूत्र में इस बात का उल्लेख किया गया है कि साधु को किसी गायभैंस, मृग आदि पशु-पक्षी एवं जलचर तथा वनस्पति (पेड़-पौधों) आदि के सम्बन्ध में भी ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे उन जीवों को किसी तरह का कष्ट पहुंचे। किसी भी पशु-पक्षी के मोटापन को देख कर साधु को यह नहीं कहना चाहिए कि इस स्थूल काय जानवर में पर्याप्त चर्बी है, इसका मांस स्वादिष्ट होता है, यह पका कर खाने योग्य है या यह गाय दोहन करने योग्य है, यह बैल गाड़ी में जोतने या हल चलाने योग्य है और इसी तरह यह पक्के फल खाने योग्य हैं या इन्हें घास में रखकर पकाने के पश्चात् खाना चाहिए, या यह अनाज या औषधि पक गई है, काटने योग्य है या इन वृक्षों की लकड़ी महलों में स्तम्भ लगाने, द्वार बनाने, आर्गला बनाने के लिए उपयुक्त है या तोरण बनाने या कुंए से पानी