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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-4-2-1 (470) 325 %3 अब साधु वप्र आदि को देखकर जो बोले वह कहतें हैं... वह इस प्रकार- सामान्य से साधु वा आदि को देखकर उनके विषय में कुछ भी न बोलें... किंतु यदि प्रयोजन आ पडे तो संयतभाषा से बोले... वह इस प्रकार- महा आरंभ-समारंभ से यह वप्र कीया गया है, बहोत सारे कठोर आचरण से यह वप्र आदि बनाये गये है... बहोत सारे प्रयत्न से कीये गये है... इसी प्रकार यह वप्र आदि प्रसादनीय एवं दर्शनीय है इत्यादि प्रकार से निर्दोष भाषा बोलीयेगा... v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति गण्डी, कुष्ट (कोढ़) और मधुमेह इत्यादि भयंकर रोगों से पीड़ित हो या उसका हाथ, पैर, नाक, कान, ओष्ठ आदि कोई अङ्ग कटा हुआ हो, तो साधु को उसे उस रोग एवं कटे हुए अङ्गों के नाम से सम्बोधित करके नहीं बुलाना चाहिए। जैसे कि- कोढ़ के रोगी को कोढ़ी, अन्धे को अन्धा या नाक कटे हुए व्यक्ति को नकटा कह कर पुकारना साधु को नहीं कल्पता। क्योंकि, पहले तो वह उक्त बीमारियों एवं अनोपाजों की हीनता के कारण परेशान, दुःखी एवं चिन्तित है। फिर उसे उस रूप में सम्बोधित करने से उसके मन को अवश्य ही आघात पहुंचेगा और उसके मन में साधु के प्रति दुर्भावना जागृत होगी। वह यह भी सोच सकता है कि यह साधु कितना असभ्य एवं असंस्कृत है कि साधना के पथ पर गतिशील होने के पश्चात भी इसकी दूसरे व्यक्ति को चिढ़ाने, परेशान करने एवं उसका मजाक उड़ाने की दुष्ट मनोवृत्ति नहीं गई है। वस्तुतः वेश के साथ अभी इसके अन्तर जीवन का परिवर्तन नहीं हुआ है। इससे उसके मन में साधु से प्रतिशोध लेने की भावना भी जागृत हो सकती है। अतः साधु को किसी के मन को चुभने वाली भाषा भी नहीं बोलनी चाहिए। इससे दूसरे व्यक्ति की मानसिक हिंसा होती है इसलिए साधु को प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे वह रोगी हो, अपंग हो, अंगहीन हो तो भी उनको सदा प्रिय एवं मधुर सम्बोधनों से सम्बोधित करना चाहिए। प्रस्तुत सूत्र में गण्ड, कुष्ट और मधुमेह तीन रोगों का नाम निर्देश किया गया है और 'कुट्ठीति वा जाव' पद में यावत् शब्द से उन रोगों की ओर भी इशारा कर दिया है जिसका उल्लेख आचाराङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के धूताध्ययन में किया गया है। ये तीनों असाध्य रोग माने गए हैं। गण्ड- यह वात-प्रधान रोग होता है, इस रोग का आक्रमण होने पर मनुष्य के पेर एवं गिट्टे में सूजन आ जाता है और कोढ़ एवं मधुमेह का रोग तो असाध्य रोग के रूप में प्रसिद्ध ही है। अतः साधु को इन असाध्य रोगों से पीड़ित एवं अंगहीन व्यक्ति को आघात लगे ऐसे मर्म भेदी शब्दों से सम्बोधित नहीं करना चाहिए। इसी विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं...
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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