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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-4-1-1 (466) 309 अब समान्य से साधु सभी जगह इस प्रकार उपदेश दें अर्थात् बोलें... कि- साधु अच्छी तरह से विचार करके या शास्त्र के माध्यम से प्रयोजन (कारण) होने पर हि निष्ठाभाषी याने सावधारण (जकार) वाली भाषा भाषासमिति के माध्यम से या समभाव अर्थात् राग एवं द्वेष का त्याग करते हुए इस सोलह प्रकार की भाषा की विधि को जानकर उचित वचन बोलें... वह इस प्रकार- एक वृक्ष को कहे कि- वृक्षः दो वृक्ष को कहे कि- वृक्षौ और तीन या तीन से अधिक वक्षों को कहे कि- वक्षाः सन्ति... इत्यादि... तथा स्त्रीलिंग वाचक शब्द- कन्या. वीणा इत्यादि... पुंलिंग वाचक शब्द- घटः पटः इत्यादि तथा नपुंसकलिंग वाचक शब्द- पीठं देवकुलं इत्यादि तथा अध्यात्मवचन- आत्मा के अंदर जो है वह अध्यात्म याने हृदयगत बात... यदि ऐसा न हो और अन्य कुछ बोले तब सहसा याने अनुपयोग से बोले हुए वचन जानीयेगा... ___ तथा उपनीत वचन याने प्रशंसा के वचन- जैसे कि- यह स्त्री रूपवती है, यह पुष्प संदर है... तथा अपनीत वचन याने- निंदा के वचन- जैसे कि- यह स्त्री रूपहीन याने करूप है इत्यादि... तथा उपनीत- अपनीत वचन याने कुछ प्रशंसा एवं कुछ निंदा- जैसे कि- यह स्त्री रूपवती है किंतु बूरे आचरणवाली है... तथा अपनीत-उपनीत वचन याने कुछ निंदा और कुछ प्रशंसा... जैसे कि- यह स्त्री कुरूप है किंतु अच्छे आचरणवाली है... तथा अतीत वचन याने भूतकाल... कृतवान्-कीया... तथा वर्तमान वचन- करोति- कार्य कर रहा है... तथा अनागत वचन याने भविष्यत्काल-कार्य करेगा... तथा प्रत्यक्षवचन- यह देवदत्त है... तथा परोक्ष वचन- वह देवदत्त है... इत्यादि यह भाषा के सोलह (16) प्रकार हैं... अतः साधु इन भाषाओं के प्रकारों को जानकर एक की विवक्षा हो तब एकवचन का प्रयोग करे... यावत् . परोक्ष वचन- की विवक्षा हो तब परोक्ष वचन का प्रयोग करें... तथा स्त्री को देखकर कहे 'कि- यह स्त्री है... पुरुष को देखकर कहे कि- यह परुष है इत्यादि सोच-विचार करके हि निष्ठाभाषी साधु भाषा-समिति के माध्यम से या समभाव से संयमी होकर हि भाषा बोलें... तथा पूर्व कहे गए और आगे कहेंगे ऐसे उन भाषा के दोषों का त्याग करके हि साधु भाषा बोलें... वह भाव-साधु और भी भाषा के चार प्रकार जानें... वे इस प्रकार- 1. सत्य भाषा... याने यथार्थ- जैसा है वैसा... जैसे कि- गाय को गाय कहें... घोडे को घोडा कहें... इत्यादि... तथा- 2. मृषा याने जूठी भाषा- जैसे कि- गाय को घोडा कहे और घोडे को बैल कहे... तथा 3. सत्य-मृषा याने कुछ सत्य एवं कुछ जुठ... जैसे कि- घोडे से जा रहे देवदत्त के लिये बोले कि- देवदत्त उंट के उपर बैठकर जाता है इत्यादि... तथा- 4. असत्य-अमृषा... याने सत्य भी नहिं और जुठी भी नहि... और मिश्र भी नहि... जैसे कि- हे देवदत्त ! यहां आइये... हे देवदत्त यज्ञदत्त को बुलाइये... इत्यादि... अब सूत्रकार महर्षि अपनी यह बात, मनोगत विकल्पों से नहि किंतु भूतकाल, वर्तमानकाल एवं भविष्यकाल के सभी तीर्थंकरादि आप्तपुरुषों ने कही है, कह रहें हैं एवं
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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