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________________ महास्तम्भ श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन (राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी हिन्दी टीका) परम पूज्य कलिकाल सर्वज्ञ सौधर्म बृहत्तपागच्छ नायक अभिधान राजेन्द्रकोष लेखक भट्रारक प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की परमोपासिका आप आहोर: राज. निवासी श्री फुलचन्दजी की धर्मपत्नी है। आपके ऊपर वैधव्य योग आने पर आपने धर्माराधना में अधिक समय व द्रव्य खर्च करने. में बिताया, आपने अपने गुरुणीजी श्रीमानश्रीजी की शिष्या सरल स्वभावी त्यागी तपस्वी श्री हेतश्रीजी महाराज व परम विदुषी गुरुणीजी प्रवर्तिनीजी श्री मुक्तिश्रीजी आदि की प्रेरणा से संघ यात्राएं एवं धर्माराधना में समय-समय पर लक्ष्मी का सद्उपयोग करती रहती है। आपने अपने पति के नाम से श्री फुलचन्द्र मेमोरियल ट्रस्ट बनाकर आहोरमें एक विशाल भूखण्ड पर श्री विद्या विहार के नाम से श्री (सहसफणा) पार्श्वनाथ भगवान का भव्य जिन मन्दिरएवंजैनाचार्य सौधर्मबहत्तपागच्छ नायक कलिकाल सर्वज्ञ अभियान राजेन्द्रकोष केलेखकस्वणगिरि, कोरटा, तालनपुर, तीर्थोदारक एवं श्री मोहनखेडातीर्थ संस्थापक भददारक प्रभश्रीमद विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजीमहाराज aarDOSTORICEKHEROTKाय की मूर्ति विराजित की। अपने धर्माराधना की प्रेरणा दात्री गुरुणीजी श्री हेतश्रीजी महाराज की दर्शनीय श्रीमती ओटीबाई फुलचंदजी मूर्ति विराजित की / आहोर से जेसलमेर संघ बसो आहोर द्वारा यात्रा करवाई, आहोर से स्वीगरि संघ निकालकर स्वर्णगिरितीर्थ: (जालोर): परपरम पूज्य आगम ज्ञाता प्रसिद्ध वक्ता मुनिराज श्री देवेन्द्रविजयजी महाराज से संघमाला विधि सहधारण की। समय-समय परसंघभक्ति करने का भी लाभ लिया। श्री मोहनखेडा तीर्थाधिराज का दितीय जिर्णोद्धार परम पूज्य शासन प्रभावक कविरत्न श्रीमविजय विद्याचन्द्रसूरिश्वरजी महाराजने सं० 2035 माघ सुदि 13 को भव्य प्रतिष्ठोत्सव किया था। उस समय श्रीसंघ की स्वामिभक्ति रूप नौकारसी की थी एवं सं0 2010 में परम पूज्य राष्ट्रसंत-शिरोमणिगच्छाधिपतिश्री हेमेन्द्रसूरीश्वरजीमहाराजने परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमदविजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के समाधि मन्दिरव 250 जिनेन्द्र भगवान की प्राण प्रतिष्ठोत्सव परसंघभक्ति में नौकारसी का लाभ लिया। तपस्या विशस्थानक तप की ओलीजी की आराधना श्री सिद्धितप, वर्षितप, श्रेणितप, वर्दमानतप की ओली, अढाई, विविध तपस्या करके इनके उद्यापन भी करवाये / यात्राएं- श्री सम्मैतशिखरजी, पालीतणा, गिरनार, आबू, जिरावला पार्श्वनाथ, शंखेश्वर पार्श्वनाथ, नागेश्वर, नाकोडा लक्ष्मणी तालनपुरमाण्डवगढ, मोहनखेडा, गोड़वाड़पंचतीर्थी, करेड़ापार्श्वनाथ, केसरियाजीआदितीर्थो की तीर्थयात्रा करकर्मनिर्जरा की। इस प्रकार अनेक धर्मकार्यो में अपनी लक्ष्मीकासद्उपयोग किया। महतराज ज्योतिष की पुस्तक के दितीय संस्करण में अपनी लक्ष्मी का दानकर पुण्योपार्जन किया।आपकीधर्मपत्री अ.सौ. प्यारीबाई भी उन्हीं के मार्ग पर चलकर तपस्या एवं दानवत्तिअच्छी तरहसेकरतीरहती है।
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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