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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-1-9 (453) 269 IV टीका-अनुवाद : इस सूत्र का अर्थ स्पष्ट हि है, किंतु नौका के आगे के भाग में न बैठें, क्योंकि- वहां निर्यामक के द्वारा उपद्रव हो शकता है... तथा नौका में बैठनेवाले लोगों के पहले (सर्व प्रथम) भी न चढें... क्योंकि- ऐसा करने से नौका के प्रवर्तन का दोष लगता है... तथा नौका में बैठा हुआ वह साधु न तो स्वयं हि नौका संबंधित कार्य करें, और अन्य के कहने से भी न करें तथा अन्य के द्वारा करवायें भी नहि... तथा छिद्र से नौका में पानी आने से नौका के डूबने की परिस्थिति में उत्सुकता को छोडकर तथा विमनस्कता का त्याग करके शरीर और उपकरणादि में मूर्छा (ममता) न रखें... तथा उस जल में नौका के द्वारा किनारे की और जाता हुआ वह साधु जिस प्रकार आर्य याने तीर्थंकरादि होते हैं उस प्रकार रहें... अर्थात् विशिष्ट अध्यवसायवाला होकर रहें... क्योंकि- यह हि साधु का संयम जीवन है... v सूत्रसार : . प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि यदि नाविक साधु को नौका के बांधने एवं खोलने तथा चलाने आदि का कोई भी कार्य करने के लिए कहे तो साधु को उसके वचनों को स्वीकार नहीं करना चाहिए। परन्तु, मौन रहकर आत्म-चिन्तन में संलग्न रहना चाहिए। इसी तरह 'नौका में पानी भर रहा हो तो साधु को उसकी सूचना भी नहीं देनी चाहिए। इन सूत्रों से कुछ पाठकों के मन में यह सन्देह हो सकता है कि यह सूत्र दया-निष्ठ साधु की अहिंसा एवं दया भावना का परिपोषक नहीं है। परन्तु, यदि इस सूत्र पर गहराई से सोचा-विचारा जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि प्रस्तुत सूत्र साधु के अहिंसा महाव्रत का परिपोषक है। क्योंकि, साधु 6 काय का संरक्षक है, यदि वह नाव को खींचने, बांधने एवं चलाने आदि का प्रयत्न करेगा तो उसमें अनेक त्रस एवं स्थावर कायिक जीवों की हिंसा होगी और नौका में छिद्र आदि का कथन करने से एकाएक लोगों के मन में भय की भावना का संचार होगा। जिससे उनमें भाग दौड़ मच जाना सम्भव है और परिणाम स्वरुप नाव खतरनाक स्थिति में पहुंच सकती है। इसलिए साधु को इन सब झंझटों से दूर रहकर अपने आत्म-चिन्तन मे संलग्न रहना चाहिए। इसमें उन अन्य व्यक्तियों के साथ साधु स्वयं भी तो उसी नौका में सवार है। यदि नौका में
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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