________________ 266 2-1-3-1-9 (453) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन नौका में सवार होने के पूर्व जो सागारी अनशन करने का उल्लेख किया गया है, उसका तात्पर्य यह है कि यदि मैं कुशलता पूर्वक किनारे न पहुंच पाऊं तो मेरे आहार-पानी आदि का जीवन पर्यन्त के लिए त्याग है। एक पैर पानी में तथा दूसरा पैर स्थल पर रखने का विधान अप्कायिक जीवों की दया के लिए किया गया है और यहां स्थल का अर्थ पानी के ऊपर का आकाश प्रदेश है, न कि पृथ्वी। इसका तात्पर्य यह है कि साधु को पानी को मथते हुए-आलोड़ित करते हुए नहीं चलना चाहिए, परन्तु विवेक पूर्वक धीरे से एक पैर पानी में और दूसरा पैर पानी के ऊपर आकाश में रखना चाहिए, इसी विधि से नौका तक पहुंच कर विवेक के साथ नौका पर सवार होना चाहिए। नौका से सम्बन्धित विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे के सूत्र से कहेंगे। I सूत्र // 9 // // 453 // से भिक्खू वा० नावं दूरूहमाणे नो नावाओ पुरओ दूरुहिज्जा, नो नावाओ मग्गओ दूरुहिज्जा, नो नावाओ मज्झओ दूरुहिज्जा, नो बाहाओ पगिज्झिय, अंगुलियाए उद्दिसिय, ओणमिय उण्णमिय निज्झाइज्जा / से णं परो नावागओ वइज्जा ! आउसंतो! समणा एयं ता तुमं नावं उक्कसाहिज्जा वा दुक्कसाहि वा खिवाहि वा रज्जूयाए वा गहाय आकासाहि। नो से तं परिणं परिजाणिज्जा, तुसिणीओ उवेहिज्जा। __ से णं परो नावागओ नावाग० वइ० -आउसंतो ! नो संचाएसि तुमं नावं उपकसित्तए वा रज्जूयाए वा गहाय आकसित्तए वा आहर एयं नावाए रज्जूयं सयं चेव णं वयं नावं उक्कसिस्सामो वा जाव रज्जूए वा गहाय आकसिस्सामो, नो से तं परिणं परि० तुसिणीओ उदेहिज्जा। से णं परो० आउसंतो ! एअं वा तुमं नावं आलित्तेण वा पीढएण वा वंसेण वा बलएण वा अवलुएण वा वाहेहि, नो से तं पo- तुसि० से णं परो० एयं ता तुम नावाए उदयं हत्थेण वा पाएण वा मत्तेण वा पडिग्गहेण वा नावा उस्सिंचणेण वा उस्सिंचाहि, नो से तं० से णं परो० समणा ! एयं तुमं नावाए उत्तिगं हत्थेण वा पाएण वा बाहुणा वा ऊरुणा वा उदरेण वा सीसेण वा काएण वा उस्सिंचणेण वा चेलेण वा मट्टियाए वा कुसपत्तएण वा कुविंदएण वा पिहेहि, नो से तं० / से भिक्खू वा, नावाए उत्तिंगेण उदयं सवमाणं पेहाए उवरुवरिं नावं