________________ 216 2-1-2-3-2 (422) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन होकर धर्म से या साधु-सन्तों से विमुख होकर उनका विरोध कर सकता है। वृत्तिकार ने भी यही भाव अभिव्यक्त किया है। निर्दोष मकान एवं शय्यातर के अनुकूल मिलने के बाद तीसरी समस्या साधना की रह जाती है। कुछ साधु विहार चर्या वाले होती हैं, कुछ कायोत्सर्ग करने में अनुरक्त रहते हैं, कुछ स्वाध्याय एवं चिन्तन-मनन में व्यस्त रहते हैं। अतः इन सब साधनाओं की दृष्टि से भी मकान अनुकूल होना आवश्यक है, अर्थात् साधना के लिए एकान्त एवं शान्त वातावरण का होना जरूरी है। इस तरह मुनि स्थान सम्बन्धी निर्दोषता एवं सदोषता को स्पष्ट रूप से बता दे और सभी दृष्टियों से शुद्ध एवं निर्दोष मकान की गवेषणा करने के पश्चात् उसमें ठहरे। साधु से मकान सम्बन्धी सभी गुण-दोष सुनने के बाद यदि कोई गृहस्थ साधु के लिए बनाए गए मकान को भी शुद्ध बताए और छल-कपट के द्वारा उसकी सदोषता को छिपाने का प्रयत्न करे तो साधु को उसके धोखे में नहीं आना चाहिए। और उसकी तरह स्वयं को भी छल-कपट का सहार नहीं लेना चाहिए। साधु को सदा सरल एवं निष्कपट भाव ही रखना चाहिए। यदि कोई गृहस्थ छल-कपट रखकर उपाश्रय के गुण-दोष जानना चाहे, तब भी साधु को बिना हिचकिचाहट के उपाश्रय सम्बन्धी सारी जानकार करा देनी चाहिए। इसी से साधु की साधना सम्यक् रह सकती है। प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त ‘चरियारए' पद से विहार चर्या का 'ठाणरए' से ध्यानस्थ होने का, 'निसिहियाए' से स्वाध्याय का, ‘उज्जुया' से छल-कपट रहित, सरल स्वभाव वाला होने का एवं 'नियाग पडिवन्ना' से संयम में मोक्ष के ध्येय को सिद्ध करने वाला बताया गया है। और 'संतेगइय पाहुडिया उक्खित्तपुव्वा भव:' पद से यह स्पष्ट किया गया है कि- साधु के उद्देश्य से बनाए गए उपाश्रय को निर्दोष बताना तथा ‘एवं परिभुत्तपुव्वा' भवइ परिट्ठवियपुव्वा भवइ' आदि पदों से इस बात को बताया गया है कि- कुछ श्रद्धालु भक्त रागवश सदोष मकान को भी छल-कपट से निर्दोष सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं साधु को उनकी बातों में नहीं आना चाहिए। यदि कभी परिस्थितिवश साधु को चरक-आदि अन्य मत के भिक्षुओं के साथ ठहरना पडे, तो किस विधि से ठहरना चाहिए इसका उल्लेख सूत्रकार महर्षि सुधर्मस्वामी आगे के सूत्र से कहेंगे... I सूत्र // 2 // // 422 // से भिक्खू वा० से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा खुड्डियाओ खुड्डदुवारियाओ निययाओ संनिरुद्धाओ भवंति, तहप्पगा० उवस्सए राओ वा वियाले वा निक्खममाणे