________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-2-1-3 (400) 177 जैसे कि- वहां उपाश्रय में मल-मूत्र आदिका त्याग करने से वहां पांउ फिसलने से गिरना होता है, इस स्थिति में शरीर के कोई भी अवयव एवं आंख आदि इंद्रियों का विनाश होता है... और अस एवं स्थावर जीवों को आघात लगे यावत् प्राण त्याग स्वरुप मरण भी हो शकता है... अतः साधुओं की पूर्व कही गइ यह प्रतिज्ञा है कि- तथाप्रकार के अंतरिक्षवाले उपाश्रय में स्थान-शय्या-निषद्यादि न करें... v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में उपाश्रय के विषम स्थान में रहने का निषेध किया गया है। जो उपाश्रय एक स्तम्भ या मंच पर स्थित हो और उसके ऊपर निःश्रेणी (लकड़ी की सीढ़ी) लगाकर चढ़ना पड़े, तो ऐसे स्थानों में किसी विशेष कारण के बिना नहीं ठहरना चाहिए। क्योंकि उस पर चढ़ने के लिए निःश्रेणी लाने (लगाने) की व्यवस्था करनी होगी और उस पर से गिरने से शरीर पर चोट लगने या अन्य प्राणियों की हिंसा होने की संभावना रहती है। अतः जहां इस तरह के अनिष्ट की संभावना हो ऐसे विषम स्थानों में नहीं ठहरना चाहिए। प्रस्तुत सूत्र में अन्तरिक्षजात स्थानों में जो ठहरने का निषेध किया गया है, वह स्थान की विषमता के कारण किया गया है। यदि किसी उपाश्रय में ऊपर बने हए आवासस्थल पर पहुंचने के लिए सुगम रास्ता है, उसमें गिरने आदि का कोई भय नहीं है और ऊपर छत इतनी मजबूत है कि चलने-फिरने से हिलती नहीं है या ऊपर से मिट्टी आदि नहीं गिरती है तो ऐसे स्थानों में ठहरने का निषेध नहीं किया गया है। आगम में यत्र-तत्र विषम स्थानों पर ठहरने या ऐसे विषम स्थानों पर रखी हुई वस्तु यदि कोई गृहस्थ उतार कर देवे तो साधु को ग्रहण करने का निषेध किया गया है। इसी तरह जो उपाश्रय दुर्बद्ध (विषम स्थान पर स्थित) है, तो वहां साधु को नहीं ठहरना चाहिए। परन्तु, जिस उपाश्रय में ऊपर पहुंचने का मार्ग सुगम है और उसमें किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं होती हो तो ऐसे स्थान में साधु को ठहरने का निषेध नहीं किया गया है। . इसी तरह ऊपर की छत पर जो हाथ-पैर धोने आदि का निषेध किया है उसमें भी यही दृष्टि रही हुई है। यदि विषम स्थान नहीं है तो साधु उस पर आ-जा सकता है तथा दन्त आदि प्रक्षालन करने का जो निषेध किया है वह विभूषा की दृष्टि से किया गया है, न कि कारण विशेष की दृष्टि से। छेद सूत्रों में स्पष्ट कहा गया है कि जो साधु विभूषा, के लिए दान्तों का प्रक्षालन करते हैं उन्हें प्रायश्चित आता है। किंतु कारण विशेष से उपाश्रय में स्थित ऊपर के ऐसे स्थानों में जिन पर पहुंचने का मार्ग सुगम है, वहां ठहरने आदि का निषेध नहीं है। - उपाश्रय के विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं...