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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-10-4 (393) 149 में वनस्पति एवं मांस का सम्बन्ध घटित नहीं हो सकता। और अस्थि एवं मांस शब्द का आगम एवं वैद्यक ग्रन्थों में गुठली एवं गर अर्थ में प्रयोग मिलता है। आचाराङ्ग सूत्र में जहां धोवन (पासुक) पानी का वर्णन किया गया है, वहां अस्थि शब्द का प्रयोग किया गया है। उसमें बताया गया है कि यदि कोई गृहस्थ आम आदि के धावन को साधु के सामने छीनकर एवं अस्थि (गुठली) निकाल कर दे तो ऐसा धोवन पानी साधु को ग्रहण नहीं करना चाहिए। यहां गुठली के लिए. अस्थि शब्द का प्रयोग हुआ है। और यह भी स्पष्ट है कि आम के धोवन में अस्थि (हड्डी) के होने की कोई सम्भावना ही नहीं हो सकती। उसमें गठली का होना ही उचित प्रतीत होता है। और आम के धोए हुए पानी में गुठली के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है। इसे स्पष्ट होता है कि अस्थि शब्द का गुठली के अर्थ में प्रयोग होता रहा है। ____ प्रज्ञापना सूत्र में वनस्पति के प्रसंग में 'मंसकहाडं' शब्द का प्रयोग किया गया है। वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'समांसं सगिरं' अर्थात् फलों का गुद्दा किया है। और वृक्षों का वर्णन करते हुए लिखा है कि कुछ वृक्ष एक अस्थि वाले फलों के होते हैं- जैसे- आम, जामुन आदि के वृक्ष / अर्थात् आम, जामुन आदि फलों में एक गुठली होती है। यह तो स्पष्ट है कि फलों में गुठली ही होती है, न कि हड्डी इससे स्पष्ट है कि आगम में अस्थि शब्द गुठली के अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है। जैनागमों के अतिरिक्त आयुर्वेद के ग्रन्थों में भी अस्थि शब्द का गुठली के अर्थ में अनेक स्थलों पर प्रयोग हुआ है तथा-वैद्यक के सुप्रसिद्ध सुश्रुतसंहिता तथा चरक संहिता से भी हमारे उक्त कथन का समर्थन होता है, यथाचूतफलेऽपरिपक्वे केशर मांसास्थि मज्जा न पथक् दृश्यन्ते / - सुश्रुत संहिता अध्याय 3, श्लोक 32, पृ० 642 / अर्थ-पके आम फल में केशर, अस्थि, मज्जा प्रत्यक्ष रूप में देखते हैं। परन्तु, कच्चे आम में ये अंग सूक्ष्म अवस्था में होने के कारण भिन्न-भिन्न नहीं दीखते, उन सूक्ष्म केशरादि को सुपक्व आमही व्यक्त रूप देता है। प्रस्तुत पाठ में फलों के बारे में कहा गया है इसे और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... सूत्र // 4 // // 393 // से भिक्खू० सिया से परो अभिहट्ट अंते पडिगिहे बिलं वा लोणं वा उब्भियं वा
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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