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________________ 130 2-1-1-9-2 (384) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन के आहार को अप्रासुक जानकर वह ग्रहण न करे। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. गांव यावत् राजधानी में रहते हुए या यामानुग्राम विहार करते हुए, ऐसा जाने कि- इस गांव यावत् राजधानी में किसी एक साधु के माता-पिता चाचा आदि पूर्व परिचित, अथवा श्वशुरादि पश्चात् परिचित रहते हैं... और गृहपति या यावत् कर्मकरी रहते हैं... तब तथाप्रकार के कुल-घरों में आहारादि के लिये न प्रवेश करें और न निकलें... गणधर म. कहतें हैं कि- यह बात मैं मेरे मनसे नहि कहता हूं किंतु केवलज्ञानी प्रभुजी कहतें हैं कि- यह आदान याने कर्मबंध का कारण है... यह बात वह साधु पहले से हि विचारे... तथा वे गृहस्थ लोग यदि उन साधुओं के लिये आहारादि की तैयारी करें या रसोइ बनावें... तब साधुओं की यह पूर्व कह गई प्रतिज्ञा है कि- तथा प्रकार के स्वजन-संबंधिजनों के घरों में भिक्षाकाल के पहले हि आहारादि के लिये न प्रवेश करें या न निकलें... अब इस स्थिति में क्या करना चाहिये ? यह बात अब कहतें हैं- वह साधु स्वजनों के घर को जानकर कोइ स्वजन न जाने इस प्रकार एकांत (निर्जन जगह) में जायें... एकांत जगह में जाकर वे स्वजनादि न आवें और न देखें इस प्रकार रहें... तथा वह साधु उस स्वजनवाले गांव में भिक्षा के समय में हि प्रवेश करें... और प्रवेश करके स्वजनों के सिवा अन्य अन्य घरों में से उद्गमादि दोष रहित एषणीय, तथा उत्पादनादि दोष रहित “वैषिक" आहारादि-भिक्षा की एषणा करके ग्रासैषणादि दोष रहित उन आहारादि को वापरें... (आहार करें-भोजन करें...) अब यहां उत्पादना के सोलह दोष का स्वरूप कहतें हैं... , 1. धात्रीपिंड... आहारादि प्राप्त करने के लिये गृहस्थ-दाता के बच्चों पर उपकार करें... तब धात्री-दोष... दूतीपिंड - गृहस्थों के आपस आपस के कार्यों को जोड़ने के लिये “दूत" का कार्य करें... निमित्तपिंड... आहारादि की प्राप्ति के लिये जब साधु अंगुष्ठ-प्रश्न आदि करें तब निमित्तपिंड... __ आजीविका-पिंड... आहारादि की प्राप्ति के लिये साधु अपनी जाति-कुल की प्रशंसा करे...
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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