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________________ 128 2-1-1-9-2 (384) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन यह स्पष्ट कर दिया गया है कि चाहे दाता श्रद्धालु हो, प्रकृति का भद्र हो, दोषों से अज्ञात हो फिर भी साधु को इस तरह का सदोष आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए। ____2. असणं वा-सूत्रकार ने जगह-जगह चार प्रकार के आहार का उल्लेख किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि मद्य-मांस आदि का आहार साधु के लिए सर्वथा अग्राह्य है। यदि इस प्रकार के पदार्थ ग्राह्य होते तो जगह-जगह चार प्रकार के आहार का ही ग्रहण न करके, अन्य प्रकार के आहार को भी साथ जोड़ देते। 3. चेइस्सामो- इससे स्पष्ट होता है कि साधु को आहार देने के बाद फिर से 6 काय का आरम्भ करके आहार तैयार करने का विचार करके दिया जाने वाला आहार भी सदोष माना गया है। अतः आहार शुद्धि के लिए साधु को बड़ी सावधानी से गवेषणा करनी चाहिए। ___ इसी विषय में कुछ और जानकारी कराते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 2 // // 384 // से भिक्खू वा वसमाणे वा० गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे, स: जं० गामं वा जाव रायहाणिं वा इमंसि खलु गामंसि वा रायहाणिंसि वा संतेगइयस्स भिक्खुस्स पुरे संथुया वा पच्छासंथुया वा परिवसंति, तं जहा-गाहावई वां जाव कम्म० तहप्पगाराइं कुलाई नो पुव्वामेव भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमिज वा पविसेज्ज वा केवली बूया-आयाणमेयं, पुरा पेहाए तस्स परो अट्ठाए असणं वा उवकरिज्ज वा उवक्खडिज्ज वा, अह भिक्खूणं पुव्वोवट्ठा जं नो तहप्पगाराइं कुलाइं पुत्वामेव भत्ताए वा पाणाए वा पविसिज्ज वा निक्खमिज्ज वा, से तमायाय एगंतमवक्कमिज्जा, अणावायमसंलोए चिट्ठिज्जा। से तत्थ कालेणं अणुपविसिज्जा तत्थियरेयरेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं एसित्ता आहारं आहारिज्जा, सिया से परो कालेण अणुपविट्ठस्स आहाकम्मियं असणं वा, उवकरिज्ज वा उवक्खडिज्ज वा, तं चेगडओ तुसिणीओ उवेहेज्जा, आहडमेव पच्चाइक्खिस्सामि, माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिज्जा, से पुव्वामेव आलोइज्जा-आउसोत्ति वा भइणित्ति वा ! नो खलु मे कप्पड आहाकम्मियं असणं वा, उवक्खडावित्ता अफासुयं / / 384 // II संस्कृत-छाया : सः भिक्षुः वा वसन् वा ग्रामानुगामं वा गच्छन्, सः यत्० ग्रामं वा यावत् राजधानी वा, अस्मिन् खलु ग्रामे वा राजधान्यां वा सन्ति एकस्य भिक्षोः पूर्वसंस्तुता:
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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