________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-8-6 (382) 123 से अन्यत्र उत्पन्न नहीं होते, तथा कन्दली के मध्य का गर्भ, कन्दली का स्तबक, नारियल का मध्यगर्भ, खजूर का मध्यगर्भ और ताड़ का मध्यगर्भ तथा इसी प्रकार की अन्य कोई कच्ची और अशस्त्रपरिणत वनस्पति, मिलने पर अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे। गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी इक्षु (इख) को, सछिद्र इक्षु की तथा जिसका वर्ण बदल गया, त्वचा फटगई एवं शृगालादि के द्वारा खाया गया ऐसा फल, तथा बैंत का अग्रभाग और कन्दली का मध्यभाग तथा अन्य इसी प्रकार की वनस्पति, जो कि कच्ची और शस्त्र परिणत नहीं हुई, मिलने पर अप्रासुक जानकर साधु उसे स्वीकार न करे। गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी लशुन, लशुन के पत्र, लशुन की नाल औश लशुन की बाह्यत्वक्-बाहर का छिलका, तथा इसी प्रकार की अन्य कोई वनस्पति जो कि कच्ची और शस्त्रोपहंत नहीं हुई है, मिलने पर अप्रासुक जान कर उसे ग्रहण न करे। गृहपति कुलमें प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी अस्तिक (वृक्षविशेष) के फल, तिन्दुकफल, बिल्वफल और श्रीपर्णीफल, जो कि गर्त आदि में रखकर धुंएं आदि से पकाए गए हों, तथा इसी प्रकार के अन्य फल जो कि कच्चे और अशस्त्र परिणत हों तब मिलने पर अप्रासुक जान कर उन्हें ग्रहण न करे। . गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी शाल्यादि के कण कणमिश्रितकुक्कस, कणमिश्रित रोटी, चावल, चावलों का चूर्ण-आटा, तिल, तिलपिष्ठ-तिलकुट और तिलपर्पटतिलपपडी तथा इसी प्रकार का अन्य पदार्थ जोकि कच्चा और अशस्त्र परिणत हो, मिलने पर अप्रासुक जान कर उसे ग्रहण न करे। यह साधु का समय-सम्पूर्ण आचार है। IV. टीका-अनुवाद : _ वह साधु या साध्वीजी म. जब ऐसा जाने कि- यह जपाकुसुमादि अयबीज हैं तथा जाइ आदि मूलबीज हैं, सल्यकी आदि स्कंधबीज हैं इक्षु (शेलडी) आदि पर्वबीज हैं, तथा अग्रजात, मूलजात, स्कंधजात, पर्वजात कि- जो अन्य अग्रबीज आदि से लाकर अन्य जगह नहिं उगे हुए है, किंतु वहिं अयबीजादि में हि उत्पन्न हुए वे अग्रजातादि... तथा उनकी कली के मस्तक याने गर्भ, तथा कलीका शीर्ष याने स्तबक (गुच्छा) है... तथा नालियेर के मस्तक (गर्भ) तथा खजूर के मस्तक, तथा ताल का मस्तक, इसी प्रकार के कोइ अन्य भी हो... और वह आम याने कच्चा तथा शस्त्र से परिणत न होने से, अचित्त हुआ न हो, तो ग्रहण न करें... .' वह साधु या साध्वीजी म. जब जाने कि- यह इक्षु (शेलडी) रोगादि के कारण से छिद्रवाली है, या खराब वर्णवाली हुइ है, या छिलका फुटे हुए छिलकेवाली है, या वरु एवं शियाल