SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-7-5 (375) 109 IV टीका-अनुवाद : __वह साधु या साध्वीजी म. जल के लिये गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर जाने किउस्सेइमं याने यह जल आटे के उत्स्वेदन याने कणिक के लिये है... तथा संसेइमं याने बरतन को लगे हुए जलबिंदु का सुखना... तथा चाउलोदगं याने चावल का ओसामण... आदेश तो यह है कि- जल का स्वच्छ होना... इत्यादि जल यदि अनाम्ल याने अपने स्वाद से बदले न हो, तथा अचित्त न हुआ हो, परिणत न हुआ हो, विघ्वस्त एवं प्रासुक न हुआ हो तो ऐसे जल को प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करें... और यदि इससे विपरीत याने अम्ल, व्युत्क्रांत परिणत यावत् प्रासुक हो तो ग्रहण करें... - तथा वह साधु जल के लिये गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर जाने कि- यह जल तिलों के द्वारा कोइक प्रकार से अचित्त हुआ है, इसी प्रकार- तुष, तथा यव, से अचित्त हुआ है... आचाम्ल याने ओसामण, सौवीर याने आरनाल (छासकी आछ) तथा शुद्धविकल याने गरम कीया हुआ अचित्त जल, इसी प्रकार अन्य भी तथाप्रकार के द्राक्षपानक याने द्राक्षजल इत्यादि पानी याने जल के प्रकारों को पहले से हि साधु उपयोग देकर जान ले और गृहस्थ को कहे कि- हे भाइ ! हे बहन ! यदि आप यह जल देना चाहते हो तो दीजीये... तब इस प्रकार कहते हुए साधु को वह गृहस्थ कहे कि- हे आयुष्मान् श्रमण / आप अपने पात्र, टोकनी या कटाह से जल ग्रहण करो... इस प्रकार गृहस्थ से अनुज्ञा मीलने पर वह साधु स्वयं हि वह जल ग्रहण करें या अन्य गृहस्थ उन्हें दें... इस प्रकार प्रासुक जल प्राप्त होने पर साधु ग्रहण करे... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया हे कि- साधु को वह पानी ग्रहण करना चाहिए जो शस्त्र से परिणत हो गया है और जिसका वर्ण, गंध एवं रस बदल गया है। अतः बर्तन आदि का धोया हुआ प्रासुक पानी यदि किसी गृहस्थ के घर में प्राप्त हो तो साधु उसे ग्रहण कर सकता है। इस प्रकार निर्दोष एवं एषणीय प्रासुक जल गृहस्थ की आज्ञा से स्वयं भी ले सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि कभी गृहस्थ पानी का भरा हुआ बर्तन उठाने में असमर्थ है और वह आज्ञा देता है तो साधु उस प्रासुक एवं एषणीय पानी को स्वयं ले सकता है। - प्रस्तुत सूत्र में 9 तरह के पानी के नामों का उल्लेख किया गया है-१. आटे के बर्तनों का धोया हुआ धोवन (पानी) / 2. तिलों का धोया हुआ पानी, 3. चावलों का धोया हुआ पानी, 4. जिस पानी में उष्ण पदार्थ ठंडे किए गए हों, वह पानी, 5. तुषों का धोया हुआ पानी, 6. यवों का धोया हआ पानी, 7. उबले हए चावलों का निकाला हआ पानी, 8. कांजी के बर्तनों फा धोया हुआ पानी, 9. उष्ण-गर्म पानी / इसके आगे 'तहप्पगारं' शब्द से यह सूचित किया क्या है कि इस तरह के शस्त्र से जिस पानी का वर्ण, गन्ध, रस बदल गया हो वह पानी
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy