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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-4-3 (358) 67 आगम में लिखा है कि- आहार आग पर पक रहा हो और गृहस्थ उसे आग पर से उतार कर दे तो साधु को स्पष्ट कह देना चाहिए कि- यह आहार मेरे लिए कल्पनीय नहीं है। इससे स्पष्ट होता है कि- प्रस्तुत सूत्र में किया गया निषेध घर में प्रवेश करने की दृष्टि से नहीं, किन्तु आग पर स्थित आहार को न लेने के लिए है। गाय को दोहन का प्रथम विकल्प घर में प्रवेश करने सम्बन्धी निषेध को लेकर है और दूसरा विकल्प उस आहार को लेने के . निषेध से सम्बन्धित है। इसका स्पष्ट कारण यह है कि- गृहस्थ के घर में स्थित पशु भयभीत नहीं हों और आहार आदि भी पक चुका हो तो साधु उस घर में प्रवेश करके आहार ले सकता है। साधु को यह विवेक अवश्य रखना चाहिए कि- उसके निमित्त किसी तरह की हिंसा एवं अयतना न हो। इसी विषय को और स्पष्ट करने के लिये हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्मस्वामी आगे का सूत्र कहेंगे। I सूत्र // 3 // // 358 // भिक्खागा नामेगे एवमाहंसु-समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगाम दुइज्जमाणे खुड्डाए खलु अयं गामे संनिरुद्धए नो महालए से हंता भयंतारो बाहिरगाणि गामा भिक्खायरियाए वयह, संति तत्थेगइयस्स भिक्खुस्स पुरे संथुआ वा पच्छा संथुया वा परिवसंति, तं जहा गाहावई वा गाहावड़णीओ वा गाहावइपुत्ता वा गाहावइधूयाओ वा गाहावइसुण्हाओ वा धाइओ वा दासा वा दासीओ वा कम्मकरा वा कम्मकरीओ वा तहप्पगाराइं कुलाइं पुरे संथुयाणि वा पच्छा संथुयाणि वा पुव्वामेव भिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि। - अविय इत्थ लभिस्सामि पिंडं वा लोयं वा खीरं वा दहिं वा नवणीयं वा घयं वा मुल्लं वा तिल्लं वा महुं वा मज्जं वा सक्कुलिं वा फाणियं वा पूयं वा सिहरिणिं च संलिहिय संमजिय तओ पच्छा भिक्खूहिं सद्धिं गाहा, पविसिस्सामि वा निक्खमिस्सामि वा माइट्टाणं संफासे, तं नो एवं करिज्जा / से तत्थ भिक्खूहिं सद्धिं कालेण अणुपविसित्ता तस्थियरेयरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं पडिग्गाहित्ता आहारं आहारिजा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं / / / 358 // // संस्कृत-छाया : . भिक्षुका: नाम एके एवं आहुः - समाना: वा वसमाना वा ग्रामानुग्रामं दूयमानाः, बुल्लकः खलु अयं ग्रामः संनिरुद्धः न महान्, ततः हन्त ! भवन्तः बहिः ग्रामेषु
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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