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________________ 62 2-1-1-4-1 (356) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन स: भिक्षुः वा सः यत् पुन: जानीयात् - मांसादिकां वा मत्स्यादिकां वा यावत् ह्रियमाणं वा प्रेक्ष्य अन्तरा तस्य मार्गाः अल्पप्राणिनः यावत् सन्तानकाः, न यत्र बहवः श्रमण यावत् उपागमिष्यन्ति, अल्पाकीर्णा वृत्तिः प्राज्ञस्य निष्क्रमणप्रवेशाय प्राज्ञस्य वाचना-पृच्छना-परिवर्तनाऽनुप्रेक्षा-धर्मानुयोगचिन्तायै, सः एवं ज्ञात्वा तथाप्रकारां पुरःसलडिं वा अभिसन्धारयेत् गमनाय || 356 // III सूत्रार्थ : साधु अथवा साध्वी गोचरी के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करके ऐसा जाने कियहां मांसप्रधान, मत्स्यप्रधान भोजन है, मांस अथवा मत्स्य के ढग रखे हुए है, विवाह संबंधी भोजन, कन्या के बिदाय के समय का भोजन, मृतभोज या यक्ष आदि की यात्रा का भोजन या स्वजन संबंधी भोजन (प्रितिभोज) है और उनके निमित्त से कोई पदार्थ ले जा रहे हैं, और मार्ग में बहुत से बीज, हरी वनस्पति, ओस, बहुत जल, चींटियों के दर, कीचड़, मकडी के जाले इत्यादि है और वहां बहुत से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, दीन और भिक्षुक आदि आए हुए है, आनेवाले हैं, आ रहे हैं और भीड़ इतनी जमा हो गई है कि- आने-जाने का मार्ग कठिनता से मिले ऐसा है। वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मानुयोग विचारने का अवकाश न हो तो ऐसी पूर्व जिमणवारी या पश्चात् जिमणवारी में जाने का साधुओं को विचार भी नहीं करना चाहिये। साधु अथवा साध्वी जो जाने कि- यहां मांसप्रधान अथवा मत्स्यप्रधान भोजन है यावत् उसके लिए कोई पदार्थ ले जा रहे हैं किंतु मार्ग में प्राणी, बीज, हरीतकाय आदि नहीं है तथा वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मानुयोग की चिंता के लिए अवकाश भी है। ऐसा जानकर अपवाद रूप में पूर्व संखडि (जिमणवार) अथवा पश्चात्संखडिं में जाने का सोचें / // 356 || IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. कहीं गांव आदि में भिक्षा के लिये प्रवेश करे तब यदि निम्नोक्त प्रकार की संखडि देखे तब उस संखडि में जाने का विचार भी न करें अर्थात् वहां संखडि में न जायें... क्योंकि- उस संखडि में मांस की मुख्यतावाली रसोई बनाते हो या रसोई बन चुकी हो... अर्थात् मांस की बहुलतावाली संखडी की गई हो... वहां कोई स्वजनादि ऐसी वस्तु ले जाय... अतः ऐसे ले जाते हुए उन्हें देखकर साधु वहां न जाय... तथा इसी प्रकार मत्स्य की मुख्यतावाली रसोइ... तथा मांस का खल याने जहां संखडि के लिये मांस के टुकडे टुकडे करके सुखाते हो या सुखे हुए मांस के टुकडे का पुंज याने ढेर किया हो... इसी प्रकार मत्स्य के खल के भी सुखकर ढेर किये हो... तथा आहेण याने विवाह के बाद वधु के प्रवेश वख्त वर के घर में भोजन किया गया हो... तथा प्रहेण याने ली जा रही वधू के पिता के
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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