________________ 441 -6 - 3 - 1 (198) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन सूत्रार्थ : इन पूर्वोक्त धर्मोपकरणों के अतिरिक्त उपकरणों को कर्मबन्ध का कारण जानकर जिस साधु ने उनका परित्याग कर दिया है, वह मुनि उत्तम धर्म को पालन करनेवाला है। वह आचार संपन्न अचेलक साधु सदा-सर्वदा संयम में स्थित रहता है। उस भिक्षु-साधु को यह विचार नहीं होता है कि- मेरा वस्त्र जीर्ण हो गया है। अतः मैं नए वस्त्र की याचना करूंगा, या सूई धागे की याचना करूंगा और फटे हुए वस्त्र को सीऊंगा या छोटे से बडा या बड़े से छोटा करूंगा, फिर उससे शरीर को आवृत्त करूंगा। ____ अथवा उस अचेलकत्व में पराक्रम करते हुए मुनि को तृण के स्पर्श चुभते हैं, उष्णता के स्पर्श स्पर्शित करते हैं और दंशमशक के स्पर्श स्पर्शित करते हैं, इत्यादि एक. या अनेक तरह के परीषहजन्य स्पर्शों को सहन करता है। अचेलक भिक्षु लाघवता को जानता हुआ कायक्लेश तप से युक्त होता है। यह पूर्वोक्त बात भगवान् महावीर ने प्रतिपादन की है। हे शिष्य ! तू भी इस बात को सम्यग् रूप से जानकर उन वीर पुरुषों की तरह कि-जिन्हों ने पूर्वकोटि वर्षों तक संयममार्ग में विचरकर परीषहों को सहन किया है, तू भी अपनी आत्मा में परीषहों को सहन करने की वैसी ही शक्ति प्राप्त कर ! इसका निष्कर्ष यह है कि- मुनि के हृदय में परीषहों को सहन करने की दृढ भावना होनी चाहिए। IV टीका-अनुवाद : जिससे कर्मो को ग्रहण कीया जाय वह आदान याने कर्म का आश्रव = कर्मबंध... अत: साधु धर्मोपकरण के सिवा अन्य अतिरिक्त वस्त्रादि का त्याग करें... इत्यादि बात जिनेश्वरों ने अच्छी तरह से कही है... अतः मुनी भी संसार की परिभ्रमणा से भीरु होने के कारण से स्वीकृत संयम भार को यथाविधि वहन करे... पाले... तथा सम्यक् प्रकार से स्वीकृत कल्प याने आचारवाला मुनी आदान याने आश्रव कर्मबंध एवं कर्मबंध के कारणभूत अतिरिक्त वस्त्रादि का त्याग करें... यहां अज्ञान शब्द का अर्थ है; अल्पज्ञान... अतः अल्पज्ञानवाला एवं अल्प वस्त्रवाला किंतु संयम की मर्यादा में रहे हुए उस साधु को यदि कभी ऐसा विचार आवे कि- मेरा वस्त्र जीर्ण हो गया है, अत: बिना वस्त्र मैं शरीर का रक्षण कैसे करुंगा ? तथा शीत आदि से पीडित अवस्था में मेरा क्या होगा ? अतः मैं कीसी गृहस्थ श्रावकादि से नये वस्त्र की याचना करूं, अथवा उस जीर्ण वस्त्र को सांधने के लिये सुत्त-धागे की याचना करूं, और सूइ की भी याचना करुं... तथा सूइ-धागा प्राप्त होने पर जीर्ण वस्त्र को जोडुंगा तथा फटे हुए वस्त्र को सीबुंगा,