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________________ 264 1-9-1-23 (287) म श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन II संस्कृत-छाया : एष विधिः अनुक्रान्तः, माहनेन मतिमता। बहुशः अप्रतिज्ञेन, भगवता एवं रीयन्ते इति ब्रवीमि // 287 // III सूत्रार्थ : प्रबुद्ध साधक भगवान महावीर ने इस विहार विचरण चर्या (विधि) को स्वीकार किया / था और उन्होंने बिना निदान कर्म-किसी प्रकार के भौतिक सुखों की कामना के बिना इस विहारचर्या विधि का आचरण किया और दुसरे साधकों को भी इस पथ पर चलने का आदेश दिया। इस लिए मुमुक्षु पुरुष इस विहारचर्या का आचरण करके मोक्ष मार्ग पर कदम बढ़ाते हैं। IV टीका-अनुवाद : अब इस प्रथम उद्देशक का उपसंहार करते हुए ग्रंथकार महर्षि कहते हैं कि- इस प्रथम उद्देशक में कही गइ चर्या-विधि की सम्यग् आचरणा श्री वर्धमान स्वामीजी ने अपने छद्मस्थ काल में बार बार की है... मतिमान् याने बुद्धिशाली, भगवान् याने ऐश्वर्यादि गुणवाले श्री महावीरस्वामीजीने कभी भी पौद्गलिक सुख प्राप्ति का निदान (नियाणा) नहि किया...अतः अन्य मुमुक्षु साधुओं का भी यह कर्त्तव्य होता है कि- परमात्मा की आचरणा के अनुसार अशेष कर्मो के क्षय के लिये इस चर्या-विधि की सम्यम् आचरणा करें... इति शब्द अधिकार की समाप्ति का सूचक है... और त्तिबेमि पद का अर्थ पूर्ववत् / V सूत्रसार : प्रस्तुत उद्देशक में साधक के लिए जो विचरण करने की विधि बताई है, वह केवल भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट ही नहीं है, अपितु, उनके द्वारा आचरित भी है इस गाथा में यह बताया है कि- भगवान महावीर ने जिस संयम-साधना का उपदेश दिया है उसे पहले उन्होंने स्वयं आचरित किया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि- साधना के द्वारा प्राप्त सर्वज्ञत्व से पहले भगवान महावीर भी एक साधारण साधु थे। उन्होंने भी भूतकाल में अनन्त काल तक संसार में परिभ्रमण किया था। अनेकों बार नरक एवं निगोद के अनन्त दुःखों का संवेदन किया था। इस तरह संसार में भटकते हुए शुभयोग मिलने पर ज्ञान को प्राप्त किया और अपने आत्म स्वरूप को समझकर साधना पथ पर आगे बढे और उसी के द्वारा आत्मा का विकास करते हुए पंचाचार के परिपालन से सर्वज्ञत्व एवं सिद्धत्व को प्राप्त किया। भगवान द्वारा आचरित साधना ही आत्मा को सिद्धत्व पद पर पहुंचाती है। जैन धर्म का पूर्ण विश्वास
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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