________________ 138 // 1-8 -4 -1 (224) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन श्रुतस्कंध - 1 अध्ययन - 8 उद्देशक - 4 # वेहानसादि मरणम् // तीसरा उद्देशक कहा, अब चौथे उद्देशक का प्रारंभ करते हैं... यहां परस्पर अभिसंबंध इस प्रकार है कि- यहां तीसरे उद्देशक में गोचरी आदि के लिये गये हुए साधु का शरीर शीत आदि से कांपते हुए देखकर कुछ उलटे सुलटे विचार करनेवाले गृहस्थ की शंका-कुशंका दूर करी... किंतु यदि वहां गृहस्थ न हो और स्त्री हि उलटे-सुलटे विचार करे तब वैहानस या गार्द्धपृष्ठादि मरण को भी साधु स्वीकार करे... यदि विशेष कारण न हो तो ऐसा न करें.... इत्यादि बात कहने के लिये इस चौथे उद्देशक का प्रारंभ करते हैं... अतः इस संबंध से आये हुए इस चौथे उद्देशक का यह प्रथम सूत्र है... .. I सूत्र // 1 // // 224 // 1-8-4-1 जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिखुसिए, पायचउत्थेहिं तस्स णं नो एवं भवइ - चउत्थं वत्थं जाइस्सामि, से अहेसणिज्जाई वत्थाई जाइज्जा, अहापरिग्गहियाई वत्थाई धारिज्जा, नो धोइज्जा, नो धोयरत्ताई वत्थाई धारिज्जा, अपलिओवमाणे गामंतरेसु ओमचेलिए, एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं // 224 // II संस्कृत-छाया : ___ यः भिक्षुः त्रिभिः वस्त्रैः पर्युषितः, पात्रचतुर्थैः तस्य न एवं भवति-चतुर्थं वस्त्रं याचिष्ये, सः अथ एषणीयानि वस्त्राणि याचयित्वा (याचित्वा) यथापरिगहीतानि वस्त्राणि धारयेत्, न धावेत् न धौतरक्तानि वस्त्राणि धारयेत् अपरिगोपयन्, ग्रामान्तरेषु अवमचेलिकः, एतत् खलु वस्त्रधारिण: सामण्यम् // 224 // III सूत्रार्थ : जो अभिग्रहधारी मुनि एक पात्र और तीन वस्त्रों से युक्त है। शीतादि के लगने पर उसके मन में यह विचार उत्पन्न नहीं होता है कि- मैं चौथे वस्त्र की याचना करूंगा, यदि उसके पास तीन वस्त्रों से कम हो तो वह निर्दोष वस्त्र की याचना करे और याचना करने पर . उसे जैसा वस्त्र मिले वैसा ही धारण करे। किन्तु, उसको प्रक्षालित न करे तथा रंगे हुए वस्त्र को धारण न करे। वह ग्रामादि में विचरन के समय अपने पास के वस्त्र को छुपाकर न रखे। वह वस्त्रधारी मुनि परिमाण में स्वल्प एवं थोडे मूल्यवाला वस्त्र रखने के कारण अवमचेलक