________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-6-5-1(207) 75 II सूत्रार्थ : वह आगम का ज्ञाता भिक्षु, गृहों में, गृहान्तरों में, ग्रामों में ग्रामान्तरों में, नगरों में, नगरान्तरों में, देशों में, देशान्तरों में, ग्रामों और नगरान्तरों में, ग्रामों और जनपदों में, नगरों और जनपदान्तरों में बहुत से लोग हिंसक-उपद्रव करने वाले होते हैं। अत: धीर पुरुष उनके द्वारा दिए गए दु:ख एवं कष्ट विशेष को तथा परीषहों के स्पर्श से स्पृष्ट हुए संवेदन को सहन करे और राग-द्वेष से रहित एकाकी होकर, समभाव पूर्वक केवल वीतराग भाव में विचरण करता हुआ, प्राणी जगत पर दयाभाव लाकर, पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर आदि सभी दिशाओं में धर्म कथा कहे, धर्म का विभाग करके समझाए। आगम का ज्ञाता मुनि सभी को व्रतों का फल सुनाए। जो जीव संयम में सावधान है-पुरुषार्थ कर रहे हैं, उनको तथा जो संयम में पुरुषार्थ नहीं कर रहे हैं; परन्तु धर्म सुनने की इच्छा रखते हैं, उनको भी धर्म कथा सुनावे। आगमों में वर्णित क्षमा, विरति, उपशम, निवृत्ति, शौच, ऋजुता, मार्दव और लघुता आदि धर्म के लक्षणों को वह विचार पूर्वक एवं स्व-पर कल्याण के लिए सर्व प्रणियों, सर्वं भूतों, सर्व सत्त्वों और सर्व जीवों को सुनाए। IV. 'टीका-अनुवाद : वह पंडित मेधावी निष्ठितार्थ वीर एवं सदैव सर्वज्ञ प्रणीत उपदेशानुसार आचारवाला तथा तीन गारव से विरक्त निर्मम निष्किंचन निराशंस एवं एकाकिविहार प्रतिमा के अभिग्रह से ग्रामानुग्राम विहार करनेवाला साधु क्षुद्र तिर्यंच (पशु-पक्षी) मनुष्य एवं देवों ने कीये हुए उपसर्ग तथा परीषहों से प्राप्त कष्ट दायक स्पर्शों को कर्मनिर्जरा की कामनावाला होकर समभाव से सहन करे... किंतु ऐसे उपसर्ग एवं परीषह के कष्ट साधु को किस परिस्थिति में होतें हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि- आहारादि के लिये विभिन्न प्रकार के गृहस्थों के घरों में प्रवेश करने पर, या दो घर के बीच में... तथा बुद्धि आदि गुणो का कवल करे वह ग्राम याने गांव अर्थात् गांव में प्रवेश करने पर, या दो गांव के बीच में... तथा जहां कर (टेक्ष) न होवे वह नकर याने नगर... अर्थात् नगर में या दो नगर के बीच... तथा जन याने लोक और पद याने निवास स्थान... ऐसे अवंती आदि जनपद में या दो जनपद के बीच मार्ग में... साधुओं के विहार के योग्य साढे पच्चीस जनपद देश हैं; वे अंग बंग सौराष्ट्र, अवंती इत्यादि... तथा गांव एवं नगर के बीच... गांव एवं जनपद के बीच... नगर एवं जनपद (देश) के बीच... तथा उद्यान याने बगीचे में या दो उद्यान के बीच... तथा विहारभूमी याने स्वाध्याय भूमी में या स्वाध्याय भूमी की और जाते हुए मार्ग में... इस प्रकार विभिन्न प्रकार के क्षेत्र में रहे हुए, कायोत्सर्गादि करते हुए उन संयमी, साधु, श्रमणों को कोइक मनुष्य कषाय से कलुषित होकर मारे, ताडन करे...