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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-2-0-05 1. द्रव्य कर्म - कर्मवर्गणा के अंतर्गत रहे हुए पुद्गल, बंधयोग्य, बंधन में आते हुए, बंधे हुए और उदय में नहि आये हुए... कर्मदल... 2. नोद्रव्यकर्म कृषीवल (किसान) आदि के कर्म... यहां कर्मवर्गणा के अंतर्गत जो पुद्गल हैं, वे द्रव्यकर्म कहे गयें हैं तो अब यहां यह प्रश्न होता है कि- वे वर्गणा क्या है ? उत्तर- वर्गणा सामान्य से चार प्रकार से है, द्रव्य क्षेत्र काल और भाव... उनमें द्रव्य से वर्गणा = एक दो तीन आदि संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेशवाली वर्गणा होती है... क्षेत्र से वर्गणा = अवगाहित द्रव्य एक, दो, तीन आदि संख्यात असंख्यात प्रदेशों में जो अवगाहना करता है, वह क्षेत्रवर्गणा है... काल से वर्गणा = एक दो तीन आदि संख्यात, असंख्यात समय स्थितिवाली जो कर्मवर्गणा, वह कालवर्गणा... भावसे वर्गणा = रूप.रस गंध स्पर्श से विभिन्न भेदवाली जो कर्मवर्गणा, वह भाववर्गणा है... ___अब विशेष रूप से द्रव्यकर्म-वर्गणा का स्वरूप कहते हैं... इस विश्व में एक एक परमाणु जितने भी हैं, उनकी एक वर्गणा... दो दो परमाणुवाले जितने भी स्कंध हैं, उनकी दो प्रदेशवाली.एक वर्गणा... इसी प्रकार तीन प्रदेशवाले पुद्गल स्कंधों की एक वर्गणा... चार प्रदेशवाले पुद्गल स्कंधो की एक वर्गणा... इसी प्रकार पांच, छह, सात यावत् संख्यात प्रदेशवाले स्कंधों की संख्यांत वर्गणा... असंख्य प्रदेशवाले पुद्गल स्कंधों की असंख्य वर्गणा... यह सभी वर्गणा औदारिक आदि परिणाम के ग्रहण-अयोग्य है... अनंत प्रदेशवाली अनंतवर्गणा भी ग्रहण-अयोग्य है... उनसे आगे औदारिक ग्रहण योग्य अनंतानंत प्रदेशवाली अनंत वर्गणा है... वे इस प्रकार औदारिक के अयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा में एक प्रदेश की वृद्धि होने से औदारिक शरीर ग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है... पुनः एक एक परमाणु-प्रदेश की वृद्धि से बढ़ते * हुए औदारिक शरीर योग्य उत्कृष्ट वर्गणा पर्यंत अनंत वर्गणा है... . अब प्रश्न यह होता है कि- जघन्य और उत्कृष्ट में क्या विशेष = अंतर है ? उत्तर = जघन्य से उत्कृष्ट विशेषाधिक है... यहां विशेषाधिक याने औदारिक जघन्य वर्गणा के प्रदेशों का अनंतवा भाग अधिक... औदारिक जघन्य वर्गणा अनंत प्रदेशवाली है, अब एक एक प्रदेश अधिक अधिक होने से औदारिक शरीर योग्य वर्गणा के जघन्य एवं उत्कृष्ट के बिच में मध्यम वर्गणा भी अनंत हि है... अब औदारिक योग्य उत्कृष्ट वर्गणा में एक परमाणु अधिक होने से औदारिक या वैक्रिय के लिये अग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है, और वे भी एक एक प्रदेश-परमाणु की वृद्धि से उत्कृष्ट पर्यंत अनंत वर्गणा हैं... यहां जघन्य से उत्कृष्ट असंख्यगुण अधिक हैं... यह सभी वर्गणाएं बहोत प्रदेशवाली और सूक्ष्म परिणामवाली होने से औदारिक शरीर के ग्रहण योग्य नहि है, और वैक्रिय शरीर योग्य वर्गणा की अपेक्षा से अल्प प्रदेशवाली एवं बादर परिणामवाली
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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