________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐 1-2-3-3 (80) // 113 तथा शालि-डांगर आदि के क्षेत्र, हवेली, घर आदि वास्तु... “यह सब मेरा है" ऐसी ममता करनेवाले को क्षेत्र आदि प्रिय होतें हैं तथा आरक्त याने थोडा लाल वर्णवाले वस्त्र आदि... और विरक्त याने बिना रंगवाला अथवा विविध रंगवाले वस्त्र आदि... तथा मणी याने रत्न, वैडूर्य, इंद्रनील आदि जडे हुए कुंडल के साथ स्त्रीओं का परिग्रह करके, उन क्षेत्र, वास्तु, आरक्तविरक्तवस्त्र, मणीकुंडल, स्त्री आदि में आसक्त ऐसे मूढ प्राणी विपर्यास को पाते हैं... वे कहते हैं कि- यहां इस विश्व में अनशनादि स्वरूप तप, इंद्रिय और मनके उपशम स्वरूप दम, और अहिंसा आदि व्रत लक्षणवाला नियम सफल है ऐसा नहि दीखता... वह इस प्रकार- तप, दम और नियमवाले मनुष्यों को कायक्लेश और भोग आदि की वंचना (ठगाना) के सिवा और कोइ फल प्राप्त नहि होता है... मान लो कि- “जन्मांतर में फल प्राप्त होगा” तो यह भी भ्रमणामात्र हि है... जैसे कि- अभी जो दिख रहे हैं उनका त्याग और जो नहिं दीखतें हैं उनकी कल्पना करना यह भ्रमणा हि है... . इस प्रकार मात्र वर्तमान काल को हि देखनेवाला, भोगोपभोग में हि एक पुरुषार्थ की बुद्धिवाला, अवसर अनुरूप विषयोपभोग को भुगतनेवाला बाल याने अज्ञानी जीव दीर्घ काल पर्यंत जीवन जीने की अभिलाषा से भोगोपभोग के लिये प्रलाप करता हुआ वचन दंड करता है... वह इस प्रकार- 'यहां तप दम और नियम के कोइ फल नहि दीखते' इस प्रकार बोलता हुआ मूढ अबुध प्राणी, हत और उपहत होता हुआ जन्म-मरण के चक्र में घुमनेवाला होता है... तथा क्षेत्र, स्त्री आदि के लोभ से मूढ मतिवाला वह प्राणी सर्वत्र तत्त्व में अतत्त्व तथा अतत्त्व में तत्त्व मानने स्वरूप, तथा हित में अहितबुद्धि स्वरूप विपर्यास याने विपरीतता को धारण करता है... कहा भी है कि- स्त्रीयां परिभव स्वरूप केदखाना है... बंधुजन बंधन स्वरूप है, और विषयोपभोग विष-जहर है... अतः दुःख के हेतुओं में सुख की इच्छा रखना यह प्राणीओं का कैसा मोह-विभ्रम है ? इत्यादि... जो लोग अशुभ कर्मो के क्षयोपशम से प्रगट हुए शुभ अध्यवसाय से मोक्ष के लक्ष्यवाले हैं वे कैसे होते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहेंगे... V सूत्रसार : यह सूर्य के उजाले की तरह स्पष्ट है कि- सम्यग्-ज्ञान से रहित विषयासक्त प्राणी कर्म जन्य फल को नहीं जानते हैं। अत: वे तप, संयम, नियम आदि पर विश्वास नहीं करते, किंतु भौतिक भोगोपभोगों में आसक्त रहते हैं। और रात-दिन खेत-मकान, वस्त्र; स्त्री आदि भोगोपभोग साधनों मे ही लिप्त रहते हैं और उन्ही में सुख की कामना करते हुए विपरीत बुद्धि को धारण करतें हैं।